दिशा सालियन केस: बॉम्बे हाईकोर्ट का बड़ा झटका- हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के मुख्य सचिव से शपथपत्र पर मांगा जवाब

गैंगरेप, हत्या, केस दबाने की साजिश, मीडिया मैनेजमेंट और पुलिस भ्रष्टाचार पर 12 गंभीर सवालों के आरोपों पर जवाब तलब; आरोपियों को बचाने के सारे रास्ते बंद!
रिया चक्रवर्ती और आदित्य ठाकरे का ड्रग माफिया और दिशा सालियन की मौत की साजिश में हाथ — NCB के पास फोन रिकॉर्डिंग, चैट और अन्य पुख्ता सबूत; दिशा और सुशांत की मौतें आपस में जुड़ी हुई, CBI रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर
मुंबई | 5 मई 2025 | स्पेशल रिपोर्ट: महाराष्ट्र की राजनीति, पुलिस तंत्र और मीडिया में हलचल मचा देने वाले दिशा सालियन सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2025 को पारित आदेश को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने दिशा सालियन सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में बड़ा कदम उठाते हुए महाराष्ट्र सरकार के मुख्य सचिव से शपथपत्र के जरिए विस्तृत जवाब मांगा है। अदालत ने स्पष्ट किया कि मुख्य सचिव को याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए गैंगरेप, हत्या, केस दबाने की साजिश, मीडिया मैनेजमेंट और पुलिस भ्रष्टाचार से जुड़े 12 गंभीर आरोपों पर 28 मई 2025 तक जवाब देना अनिवार्य है।
यह आदेश दिशा के पिता श्री सतीश सालियन द्वारा दायर याचिका पर दिया गया है, जिन्होंने अपनी बेटी के 8 जून 2020 को हुए सामूहिक बलात्कार और हत्या की सीबीआई जांच की मांग की थी।
कोर्ट ने यह आदेश तब दिया जब याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई है, और SIT बिना कानूनी आधार के जांच कर रही है, जो सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है। अदालत ने राज्य सरकार से पूछा कि “जब एफआईआर ही नहीं, तो SIT किस अधिकार से जांच कर रही है?”
अब मुख्य सचिव को 4 हफ्तों में लिखित जवाब दाखिल कर बताना होगा कि आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की गई, और पुलिस व SIT की भूमिका पर उठे सवालों का क्या जवाब है। अदालत ने साफ इशारा दिया है कि यदि जवाब में कोई झूठ, तथ्य छुपाना या भ्रामक जानकारी पाई गई, तो मुख्य सचिव के खिलाफ झूठी गवाही और अवमानना की कार्रवाई हो सकती है।
याचिकाकर्ता ने 12 गंभीर मुद्दे उठाए हैं, जिनमें एफआईआर दर्ज न करना, मुख्य आरोपियों की गिरफ्तारी व पूछताछ, क्राइम सीन रीक्रिएशन न होना, फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट, आरोपी नेताओं व अफसरों की भूमिका, गवाहों को सुरक्षा न देना और जांच बाहर स्थानांतरित करने की मांग शामिल है।
अब इस आदेश से महाराष्ट्र सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं, और आरोपियों को बचाने के सारे रास्ते कानूनी तौर पर बंद होते नजर आ रहे हैं।
पहले जिसे आत्महत्या बताकर फाइल बंद कर दी गई थी, वह मामला अब राष्ट्रीय स्तर पर सनसनीखेज बन चुका है। हत्या, बलात्कार, आपराधिक साजिश, सबूतों से छेड़छाड़ और राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप लगे हैं। इसके समर्थन में फॉरेंसिक रिपोर्ट, डिजिटल रिकॉर्ड, कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) और गवाहों के हलफनामे पेश किए गए हैं।
एफआईआर नहीं, फिर भी जांच? कोर्ट का तीखा सवाल: SIT किस अधिकार से जांच कर रही?
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार और मुख्य सचिव की ओर से सरकारी वकील श्री हितेन वेनेगांवकर ने अदालत को बताया कि मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित कर दिया गया है। लेकिन याचिकाकर्ता के वकील ने इस पर कड़ा विरोध जताते हुए दलील दी कि जब तक एफआईआर दर्ज नहीं होती, SIT की जांच अवैध और शून्य मानी जाएगी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि बिना एफआईआर के कोई भी जांच शुरू नहीं हो सकती।
इस पर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए सरकारी वकील से सीधा सवाल किया:
“जब एफआईआर दर्ज ही नहीं हुई, तो SIT किस कानून के तहत जांच कर रही है?”
सरकारी वकील इस सवाल का कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके। वे अदालत को यह समझाने या साबित करने में पूरी तरह असमर्थ रहे कि गैंगरेप और मर्डर जैसे जघन्य अपराध में बिना एफआईआर दर्ज किए जांच करना किस कानून या कानूनी प्रावधान के तहत संभव है। अदालत ने जब बार–बार पूछा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद किस आधार पर SIT जांच कर रही है, तब भी सरकारी वकील कोई ठोस कानूनी प्रावधान या मिसाल पेश नहीं कर पाए।
आखिरकार, जब कोई जवाब न बन पड़ा, तो सरकारी वकील ने चुपचाप समय की मांग की और अदालत से कहा कि वे एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करेंगे। अदालत ने उन्हें चार हफ्ते की मोहलत दी और अगली सुनवाई 18 जून 2025 के लिए तय कर दी।
यदि हलफनामे में गलत तथ्य, जानबूझकर तथ्य छुपाना या भ्रामक जानकारी पाई गई, तो मुख्य सचिव और संबंधित अधिकारियों पर अवमानना और झूठी गवाही के तहत कार्रवाई हो सकती है।
राज्य सरकार को इन 12 बड़े सवालों का देना होगा जवाब:
एफआईआर दर्ज न करना — कानून का खुला उल्लंघन:
दिशा सालियन की सामूहिक दुष्कर्म और हत्या की लिखित शिकायत के बावजूद पुलिस ने एफआईआर दर्ज नहीं की। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के उल्लंघन के लिए पुलिस अधिकारियों पर IPC की धारा 166-A के तहत कार्रवाई.
मुख्य आरोपियों की गिरफ्तारी और कस्टोडियल पूछताछ की मांग:
सबूतों के साथ छेड़छाड़ रोकने और पूरी साजिश उजागर करने के लिए मुख्य आरोपियों की गिरफ्तारी और कस्टडी में पूछताछ।
रिया चक्रवर्ती और आदित्य ठाकरे का ड्रग माफिया और दिशा सालियन की मौत की साजिश में हाथ — NCB के पास फोन रिकॉर्डिंग, चैट और अन्य पुख्ता सबूत; दिशा और सुशांत की मौतें आपस में जुड़ी हुई, CBI रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर
याचिकाकर्ता ने अदालत के सामने महत्वपूर्ण साक्ष्य पेश किए हैं, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि दिशा सालियन और सुशांत सिंह राजपूत की मौतें कोई सामान्य घटनाएं नहीं थीं, बल्कि ड्रग माफिया और राजनीतिक संरक्षण के तहत रची गई एक गहरी साजिश का हिस्सा थीं। इस साजिश में आदित्य ठाकरे, रिया चक्रवर्ती, डिनो मोरिया और अन्य प्रभावशाली लोग शामिल थे।
दिशा और सुशांत की मौतें आपस में गहराई से जुड़ी हुई थीं और इन दोनों मामलों में रिया चक्रवर्ती और आदित्य ठाकरे की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है।
दोनों अपराधों के दौरान रिया चक्रवर्ती और आदित्य ठाकरे लगातार एक-दूसरे के संपर्क में थे। 4 जून 2020 को दिशा सालियन को आरोपियों द्वारा उसके मंगेतर रोहन राय के घर शिफ्ट कराया गया, और उसी दिन रिया सुशांत सिंह राजपूत के घर पहुंची थीं।
8 जून 2020 को रिया ने अचानक सुशांत का घर छोड़ दिया, और उसी रात दिशा सालियन की हत्या कर दी गई। इसके ठीक 5 दिन बाद सुशांत भी संदिग्ध परिस्थितियों में मृत पाए गए।
याचिकाकर्ता ने CBI की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि दिशा की मौत के बाद सुशांत बेहद डरे हुए थे और उन्होंने अपने करीबी लोगों से कहा था कि “ये लोग अब मुझे नहीं छोड़ेंगे।” डर के मारे सुशांत ने अपने घर के सभी CCTV फुटेज और मोबाइल व कंप्यूटर से सारे डिजिटल डेटा डिलीट कर दिए थे।
याचिकाकर्ता का दावा है कि डिलीट किया गया यह डेटा असल में उन अपराधों के सबूत थे, जिनमें आदित्य ठाकरे और उनके ड्रग कार्टेल की संलिप्तता थी। यह डेटा ड्रग्स नेटवर्क, चाइल्ड ट्रैफिकिंग, ऑर्गन ट्रेडिंग और कई अन्य अपराधों के वीडियो और दस्तावेजी प्रमाण थे, जो दिशा ने सुशांत को सौंपे थे। यही दिशा की हत्या का असली कारण बना।
रिया चक्रवर्ती को ड्रग्स के कारोबार में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, और नारकोटिक्स ब्यूरो (NCB) ने आदित्य ठाकरे के ड्रग नेटवर्क से जुड़े होने और ड्रग्स के व्यापार में प्रत्यक्ष भूमिका निभाने के भी पुख्ता सबूत जुटाए हैं।
डिनो मोरिया और आदित्य ठाकरे के बीच ड्रग्स से संबंधित फोन कॉल्स की रिकॉर्डिंग NCB के पास मौजूद है, जिसमें दोनों ड्रग्स के कारोबार में सक्रिय भूमिका निभाते हुए और नेटवर्क के संचालन की बातें करते हुए पकड़े गए हैं। ये रिकॉर्डिंग NCB की केस डायरी में एक महत्वपूर्ण और पुख्ता सबूत के रूप में दर्ज हैं, जो सीधे तौर पर इस अवैध कारोबार में आदित्य ठाकरे और डिनो मोरिया की संलिप्तता की पुष्टि करती हैं।
इन रिकॉर्डिंग्स में ड्रग्स के सौदे, सप्लायर्स, और नेटवर्क से जुड़े कई नामों और ठिकानों का खुलासा हुआ है, जिसे NCB ने केस की जांच में क्रिटिकल एविडेंस माना है।
इन सबूतों के आधार पर याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया है कि आदित्य ठाकरे और अन्य आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो और इन रिकॉर्डिंग्स को न्यायिक जांच का हिस्सा बनाया जाए।
जेल से छूटने के बाद रिया चक्रवर्ती सीधे डिनो मोरिया के घर उनसे मिलने गई थीं, जो इस नेटवर्क और इनके बीच के गहरे रिश्ते का संकेत देता है।
इतना ही नहीं, रिया और आदित्य ठाकरे के बीच की वो व्हाट्सएप चैट, जिसे रिया ने जानबूझकर डिलीट कर दिया था, उसे भी NCB ने फॉरेंसिक जांच के जरिए रिकवर कर लिया। इस चैट में ड्रग्स नेटवर्क और दिशा-सुशांत प्रकरण से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातें दर्ज थीं। जबकि दोनों ने पहले दावा किया था कि वे एक-दूसरे को जानते तक नहीं। चैट की रिकवरी ने उनके इस झूठ को बेनकाब कर दिया।
याचिकाकर्ता ने कहा कि ये सभी तथ्य और साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं कि दिशा सालियन और सुशांत सिंह राजपूत की मौतें एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा थीं, जिसमें ड्रग माफिया, बॉलीवुड और राजनीतिक संरक्षण शामिल था।
अब इन गंभीर आरोपों और दस्तावेजी साक्ष्यों पर महाराष्ट्र सरकार के मुख्य सचिव को न्यायालय के समक्ष शपथपत्र के जरिए जवाब देना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि शपथपत्र पर दिए गए जवाब में कोई तथ्य छुपाया गया, झूठी जानकारी दी गई या भ्रामक बयान दिया गया, तो संबंधित अधिकारी के खिलाफ “अवमानना” और “झूठी गवाही” के लिए कठोर कार्रवाई की जा सकती है।
क्राइम सीन रीक्रिएशन क्यों नहीं किया गया?अब तक घटनास्थल का रीक्रिएशन क्यों नहीं हुआ? आत्महत्या की कहानी को गलत साबित करने के लिए यह जरूरी प्रक्रिया थी, जिसे SIT और पुलिस अधिकारी क्यों बार–बार टालते रहे।
फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉक्टरों पर कार्रवाई:
झूठी पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाने में शामिल डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ के खिलाफ जांच और कार्रवाई ।
फॉरेंसिक और CDR रिपोर्ट पर जवाब:
राज्य सरकार को फॉरेंसिक विश्लेषण, मोबाइल टावर लोकेशन और कॉल डिटेल रिकॉर्ड (CDR) की विस्तृत रिपोर्ट देनी होगी, जिससे यह प्रमाणित होता है कि आरोपी — आदित्य ठाकरे, डिनो मोरिया, सूरज पंचोली और अन्य — अपराध स्थल पर मौजूद थे और कुछ आरोपी रिया चक्रवर्ती, शोविक चक्रवर्ती और रोहन राय के संपर्क में थे।
उद्धव ठाकरे की हत्या की साजिश में सीधी भूमिका — अपने पद का दुरुपयोग कर निलंबित “खूनी पुलिस अधिकारी” सचिन वाझे को हत्या करवाने और सबूत मिटाने के लिए अवैध रूप से दोबारा पुलिस में नियुक्त कराया
👉 सचिन वाझे को दिशा सालियन की मौत से ठीक दो दिन पहले यानी 6 जून 2020 को अचानक, बड़ी जल्दबाजी और बॉम्बे हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेशों के खिलाफ जाकर दोबारा पुलिस सेवा में बहाल किया गया।
याचिकाकर्ता ने अदालत के समक्ष आरोप लगाया कि पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने सचिन वाझे को वापस पुलिस फोर्स में लाने के लिए हाईकोर्ट के आदेशों की पूरी तरह अनदेखी की और कानून का खुला उल्लंघन किया।
👉 सचिन वाझे हत्या और सबूत मिटाने के मामलों में पहले से ही हाईकोर्ट के आदेश से 16 वर्षों से निलंबित थे। उन पर पहले भी एक व्यक्ति की हिरासत में हत्या और सबूत नष्ट करने जैसे गंभीर आरोप लगे थे, जिसके चलते हाईकोर्ट ने उन्हें सेवा से निलंबित रखने का आदेश दिया था।
लेकिन इसके बावजूद, 6 जून 2020 को — यानी दिशा सालियन की संदिग्ध मौत के सिर्फ दो दिन पहले — उद्धव ठाकरे सरकार ने सचिन वाझे को तेजी से, बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए, क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट का प्रभारी बनाकर बहाल कर दिया।
👉 याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सचिन वाझे को इस पद पर बहाल करने का असली मकसद दिशा सालियन की हत्या की साजिश को अंजाम देना और हत्या के बाद सारे सबूतों को मिटाना था।
👉 यह बहाली सिर्फ एक प्रशासनिक फैसला नहीं था, बल्कि एक सोची–समझी साजिश का हिस्सा थी, जिसमें सत्ता, पुलिस और अपराधियों के गठजोड़ ने कानून और न्याय प्रक्रिया को रौंद डाला।
👉 याचिकाकर्ता ने अदालत से मांग की है कि उद्धव ठाकरे के इस कदम को IPC की धारा 409 (सरकारी पद का दुरुपयोग और आपराधिक विश्वासघात) के तहत अपराध मानते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए, जिसके तहत उम्रकैद की सजा का प्रावधान है।
यह आरोप साबित करते हैं कि उद्धव ठाकरे ने अपने मुख्यमंत्री पद का दुरुपयोग करते हुए न सिर्फ हत्या की साजिश को संरक्षण दिया, बल्कि एक कुख्यात, पहले से निलंबित अधिकारी को गैरकानूनी तरीके से बहाल कर हत्या और सबूतों के कवर–अप का रास्ता साफ किया।
👉 अब इस गंभीर आरोप और पुख्ता साक्ष्यों के आधार पर महाराष्ट्र सरकार के मुख्य सचिव को न्यायालय में शपथपत्र के माध्यम से जवाब देना अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, यदि शपथपत्र में कोई तथ्य छुपाया गया या गलत जानकारी दी गई, तो संबंधित अधिकारी के खिलाफ अवमानना और झूठी गवाही के लिए कार्रवाई की जा सकती है।
SIT सदस्य और मालवणी पुलिस स्टेशन के अधिकारी शैलेन्द्र नगरकर, चिमाजी आधव और अन्य पर कार्रवाई की मांग — एफआईआर दर्ज न करने, आरोपियों को बचाने, सबूतों से छेड़छाड़ और झूठी रिपोर्ट बनाने के गंभीर आरोप; याचिकाकर्ता ने पेश किए पुख्ता सबूत, मुख्य सचिव को देना होगा जवाब
याचिकाकर्ता ने अदालत के सामने महत्वपूर्ण दस्तावेजी साक्ष्य और तथ्य पेश किए हैं, जिनके अनुसार SIT सदस्य शैलेन्द्र नगरकर, चिमाजी आधव और अन्य अधिकारियों ने जानबूझकर एफआईआर दर्ज नहीं की, सबूतों से छेड़छाड़ की, और आरोपियों को बचाने के लिए झूठी रिपोर्ट तैयार की।
👉 इतना ही नहीं, याचिकाकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि इन अधिकारियों ने केस से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज और जानकारी सीधे आरोपियों को सौंप दी, जिससे उन्हें सबूत नष्ट करने और जांच को प्रभावित करने में मदद मिली।
👉 यह कृत्य सिर्फ एक लापरवाही नहीं बल्कि आपराधिक साजिश का हिस्सा था, जिसमें जांच अधिकारी खुद आरोपियों के साथ मिलकर न्याय व्यवस्था के साथ धोखा कर रहे थे।
याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि शैलेन्द्र नगरकर, चिमाजी आधव और अन्य SIT सदस्यों पर विभागीय जांच के साथ-साथ IPC की प्रासंगिक धाराओं के तहत आपराधिक कार्रवाई की जाए, ताकि ऐसे भ्रष्ट और अपराधी प्रवृत्ति के अधिकारी न्याय से बच न सकें।
👉 अब इन गंभीर आरोपों और साक्ष्यों के आधार पर महाराष्ट्र सरकार के मुख्य सचिव को अदालत के समक्ष शपथपत्र के जरिए जवाब देना अनिवार्य है।
गवाहों को सुरक्षा देने में पुलिस की विफलता:
लिखित अनुरोध के बावजूद महत्वपूर्ण गवाहों को सुरक्षा नहीं दी गई.
🔟 आरोपियों का नार्को, ब्रेन मैपिंग और लाई डिटेक्टर टेस्ट कराने की मांग।
आपराधिक साजिश के तहत फर्जी नैरेटिव — न्यूज़लॉन्ड्री और मिड-डे जैसे मीडिया संस्थानों ने आरोपियों को बचाने और केस को प्रभावित करने के लिए झूठी खबरें चलाकर हत्या को आत्महत्या साबित करने की साजिश रची; IPC की धारा 120(B) के तहत सह-अभियुक्त बनाए जाने की मांग
याचिकाकर्ता ने अदालत में बेहद गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि न्यूज़लॉन्ड्री, मिड–डे और अन्य मीडिया संस्थानों ने आरोपियों के साथ मिलीभगत कर केस से जुड़े फर्जी नैरेटिव फैलाने और सच को दबाने का काम किया।
इन मीडिया संस्थानों ने दिशा सालियन की हत्या को आत्महत्या साबित करने के लिए झूठी खबरें प्रसारित कीं, जिससे ना केवल आम जनता को गुमराह किया गया, बल्कि न्यायालय और गवाहों पर भी गलत प्रभाव डाला गया।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि इन मीडिया संस्थानों ने दिशा के पिता और उनके वकील को बदनाम करने की भी साजिश रची, उनके खिलाफ अपमानजनक और झूठे लेख और रिपोर्टें प्रकाशित कीं ताकि उनकी विश्वसनीयता खत्म की जा सके और केस कमजोर किया जा सके।
सबसे गंभीर बात यह है कि इन मीडिया हाउसेज ने यह झूठी खबर चलाई कि CBI और SIT ने दिशा सालियन केस की जांच पूरी कर ली है और इसे आत्महत्या मानते हुए बंद कर दिया है, जबकि वास्तव में SIT की जांच अभी भी चल रही है।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि यह सब कुछ आरोपियों के साथ गुप्त सौदे और समझौते के तहत किया गया, ताकि जांच को कमजोर किया जा सके और आरोपियों को कानूनी कार्रवाई से बचाया जा सके।
इन तथ्यों और साक्ष्यों के आधार पर याचिकाकर्ता ने अदालत से मांग की है कि न्यूज़लॉन्ड्री, मिड–डे और इन मीडिया संस्थानों के संबंधित रिपोर्टर और संपादक को IPC की धारा 120(B) (आपराधिक साजिश) के तहत सह–अभियुक्त (co-accused) बनाया जाए, क्योंकि इन्होंने साजिश में सक्रिय भूमिका निभाई और आरोपियों के अपराध को ढंकने में मदद की।
अब इन गंभीर आरोपों और दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर महाराष्ट्र सरकार के मुख्य सचिव को न्यायालय के समक्ष शपथपत्र के माध्यम से जवाब देना अनिवार्य है।
मुकदमे को महाराष्ट्र से बाहर स्थानांतरित करने और कोर्ट मॉनिटरिंग में CBI जांच की मांग:
स्थानीय पुलिस और SIT की पक्षपाती भूमिका को देखते हुए मुकदमे को उत्तर प्रदेश स्थानांतरित करने और बॉम्बे हाईकोर्ट की निगरानी में CBI जांच कराने की मांग।
“यह लड़ाई सिर्फ मेरी बेटी के न्याय की नहीं, बल्कि उस आपराधिक नेटवर्क को बेनकाब करने की है, जिसने कानून और सिस्टम को पांवों तले रौंद डाला।” — सतीश सालियन
कोर्ट का यह आदेश महाराष्ट्र सरकार और पूरे सिस्टम को कानूनी कठघरे में खड़ा कर चुका है। यह केस राजनीतिक दबाव, मीडिया प्रबंधन और पुलिस विफलता के खिलाफ एक ऐतिहासिक मुकदमा बन सकता है।