[ब्रेकिंग] बाबा रामदेव मामले में जस्टीस अमानुल्ला और हिमा कोहली के खिलाफ कोर्ट अवमानना और अन्य कारवाई के लिये याचिका दायर।
सुप्रीम कोर्ट के जजेस और पूर्व चीफ जस्टीस ऑफ़ इंडीया द्वारा जस्टीस अमानुल्ला की कठोर निंदा। उन्हे सड़कछाप भाषा का इस्तेमाल ना करने की दी सलाह।
‘इंडियन लॉयर्स एंड ह्युमन राईट्स एक्टिव्हिस्ट्स एसोसिएशन’ की ओरसे राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष जस्टीस अरुण मिश्रा के पास याचिका दर्ज।
‘सुप्रीम कोर्ट लॉयर्स एसोसिएशन’ के अध्यक्ष एड. ईश्वरलाल अगरवाल और ‘इंडियन बार एसोसिएशन’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष एड. निलेश ओझा करेंगे पैरवी।
‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ और उनके वकिलो को भी झूठे शपथपत्र और गैरकानूनी कामो के लिए आरोपी बनाकर कारवाई की मांग।
जस्टीस अमानुल्ला और हिमा कोहली के खिलाफ की कारवाई को कई बार एसोसिएशन (वकिल संगठन),मानवाधिकार कार्यकर्ता, जजेस, डॉक्टर्स, आयुर्वेदिक, नॅचरोपॅथी हेल्थ प्रेक्टिशनर, समेत जनता का प्रचंड समर्थन।
जस्टीस अमानुल्ला और हिमा कोहली को कानून की सही जानकारी नहीं होने की बात साबित हो चुकी है और उनका आचरण एक जज को शोभा न देनेवाला होने की वजह से तथा उनके द्वारा सुप्रीम कोर्ट के ही आदेशों का उल्लंघन करना और IPC के तहत अपराध करना साबित होने की वजह से उनके सारे काम निकालकर उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव भेजने की मांग।
दोनों आरोपी जजेस के खिलाफ कोर्ट अवमानना कानून १९७१ की धारा २(b), (c), १२ और १६ तथा भा.दं.सं. की धाराए १६६, २१९, २१८, ४०९, १२०(B), १०७, १०९, ३४ इत्यादी के तहत कारवाई कर सजा देने की मांग।
सुप्रीम कोर्ट की संपत्ती और समय जो की जनता की संपत्ती है। उसका ईस्तेमाल कानून के खिलाफ जाकर फार्मा माफियाओ को मदद करने के लिए और आयर्वेदिक तथा अन्य चिकत्सा पद्धतीयो को दबाने, डराने और धमकाने के लिए करने की वजह से दोनों जजेस के खिलाफ भा.दं.सं ४०९ की धारा के अंतर्गत कारवाई की मांग की गई है जिसमे आजीवन कारावास (उम्रकैद) की सजा का प्रावधान है।
इसके पहले भी ऐसी ही हरकतों की वजह से कई जजेस को कोर्ट अवमानना में जेल भेजना और उनके खिलाफ भा.दं.सं. के तहत कारवाई के आदेश सीबीआय को देना जजेस के सारे क़ानूनी काम निकाल लेना, उन्हें त्यागपत्र देने को कहना और त्यागपत्र ना देने पर उनके खिलाफ महाभियोग की कारवाई का प्रस्ताव राज्य सभा को भेजना ऐसी कारवाई सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की ओर से कि जा चुकी है और उसमे जस्टीस कर्णन, जस्टीस निर्मल यादव, जस्टीस शमीत मुखर्जी, जस्टीस पी. डी. दिनाकरण, जस्टीस शुक्ला, रमणलाल इत्यादी नाम प्रमुख है।
उनमे से कई जजेस को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ सीबीआय ने आरोपपत्र भी दायर किया है।
नई दिल्ली :- पतांजली योगपीठ और बाबा रामदेव के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने और उन्हें धमकाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो जजेस जस्टीस अहसानुद्दीन अमानुल्ला और जस्टीस हिमा कोहली बुरे फस गए है।
इन जजेस की असभ्यता और अभद्रता के खिलाफ खुद सुप्रीम कोर्ट के जजेस और पूर्व चीफ जस्टीस ने मोर्चा खोला है और आरोपी जजेस को सुप्रीम कोर्ट के जजेस के ‘कोड ऑफ़ कंडक्ट’ के संदर्भ में दिये गये दो आदेश को पढ़ने की सलाह दी है। [Krishna Swami v. Union of India, (1992) 4 SCC 605, C. Ravichandran Iyer v. Justice A.M. Bhattacharjee (1995) 5 SCC 457]
ॲलोपॅथी कंपनीयो को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए फार्मा माफियाओ के इशारे पर Indian Medical Association (IMA ) द्वारा पतंजली आयुर्वेद और रामदेव बाबा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमे ॲलोपॅथी दवाईयो और वैक्सीन के जानलेवा दुष्परिणाम को छुपाकर उन्हे असरदार दिखाकर आयुर्वेदिक, नॅचारोपॅथी जैसी ज्यादा बेहतर, असरदार, हानिरहित तथा सस्ती चिकित्स्ता पद्धत्ति को नीचा दिखाकर उसके द्वारा ईलाज करने वाले डॉक्टर, चिकित्स्क आदि को धमकाकर जनता की सेवा करने से परावृत्त करने का आपराधिक षड्यंत्र रचा गया था।
नवंबर 2023 को उस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जज श्री अहसानुद्दीन अमानुल्ला ने यह धमकी दी की वे पतंजली के सभी कंपनीयो पर ताला लगाकर हर प्रॉडक्ट पर १ करोड़ रूपये का जुर्माना लगायेंगे।
हलाकि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं हैं जिसमे सुप्रीम कोर्ट के जज को किसी दवाई कंपनी को ताला लगाने और 1 करोड़ रुपये प्रति प्रॉडक्ट जुर्माना लगाने का अधिकार दिया गया हैं। अगर बाबा रामदेव द्वारा किसी भी दवाई के उत्पादन में किसी भी नियम का उल्लंघन किया गया हैं तो ड्रग्स एंड मॅजिक रेमेडीस एक्ट, कॉस्मेटिक एक्ट ‘ आदि कानूनों के तहत करवाई का अधिकार सिर्फ सम्बंधित अधिकारी को दिया गया हैं और केस सिर्फ स्थानीय अदालत में चल सकता हैं।
अपने अधिकार क्षेत्र से बहार जाकर पद का दुरूपयोग करके गैरकनूनी काम करने और आदेश पारित करने वाले जजस के खिलफ भा.दं.सं. १६६, २१९, ४०९, १२०(B), ३४ की आदी धाराओं में 7 साल और उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान है।
जस्टीस अमानुल्ला की उस गलत हरकत के खिलाफ पहले ही राष्ट्रपती के पास २४.११.२०२३ को शिकायत दर्ज की जा चुकी है [PRSEC/E/2023/0049329]
इस बात की जानकारी होने के बाद में एप्रिल २०२४ को जब मामला सुनवाई के लिए आया तब जस्टीस अमानुल्ला ने वो १ करोड़ वाला अपना राग छोड़ दिया और अपने गुस्से का इजहार करने के लिए नया तरीका निकालकर बाबा रामदेव को और सरकारी अधिकारीयो को एकदम असभ्य और अभद्र भाषा में धमकी दे डाली की वो बाबा रामदेव और अधिकारीयो की बखीया उधेड़ देंगे उन्हें चिर कर रख देंगे (will rip you apart)
जस्टीस अमानुल्ला के बाबा रामदेव के साथ के इस व्यवहार से देशभर में गुस्सा फुट पड़ा। उनकी सभी स्तरोंपर निंदा होने लगी यहां तक की सुप्रीम कोर्ट के जजेस और पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडीया ने भी जस्टीस अमानुल्ला और जस्टिस हिमा कोहली की निंदा की।
इंडियन बार एसोसिएशन के अध्य्क्ष एड. निलेश ओझा और सुप्रीम कोर्ट लॉयर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एड. ईश्वरलाल अग्रवाल ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में एक जनहित याचिका दायर की है। इस याचिका के याचिकाकर्ता ‘इंडियन लॉयर्स एंड ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट्स एसोसिएशन’ है ।
केस के मुख गवाह रशीद खान पठान, मुर्सलीन शेख और अव्हेकन इंडिया मुव्हमेंट के कई सदस्य है।
उस याचिका में मांग की गई है की दोषी जजेस के खिलाफ कोर्ट अवमानना कानून 1997 की धारा २ (b)(c), १२, १६ और भा.दं.सं. की धारा १६६, २१९, २१८, ४०९, १२० (B), ३४, १०७ इत्यादि के तहत केस दर्ज करने के निर्देश देश के सॉलीसटर जनरल या एटॉर्नी जनरल की दिये जाये।
साथ में यह भी मांग की गई है की सुप्रीम कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल को यह आदेश दिया जाये की वे सारे सबूतों को और शिकायतो को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के सामने रखे ताकि ‘इन-हाउस-प्रोसीजर’ के नियमो के तहत दोनों आरोपी जजेस का कानूनी कामकाज निकलकर उनकी बर्खास्तगी के लिए महाभियोगका प्रस्ताव राज्यसभा को भेजा जा सके।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने अपने शपथपत्र में कोरोना वैक्सीन के बारे में झूठी जानकारी दी है और बाबा रामदेव ने दी हुई जानकारी दुनियाभर के वैज्ञानिक शोधपत्रों के आधारपर सही पाई गई है।
वैज्ञानिक शोधपत्र मे यह पाया गया की कोरोना वैक्सीन से कोरोना महमारी मे कोई भी भरौसेलायक सुरक्षा नही मिलती है बल्कि इस वैक्सीन के जानलेवा दुष्परीणाम है। कोव्हिशील्ड वैक्सीन को मौत के दुष्परीणामो की वजह से 21 युरोपियन देशो मे पाबंदी लगा दी गई थी।
शोध मे यह भी पाया गया की ज्यादा वैक्सीन देने वाले देशो मे ज्यादा मौते हुई है और vaccine का खतरा कोरोना से ९८ गुना ज्यादा हानिकारक है।
शोध मे यह भी पाया गया की vaccine लेनेवाले लोगो मे cancer का खतरा 10,000 गुणा बढ़ गया है।
डॉ. स्नेहल लुणावत की मौत कोव्हीशील्ड वैक्सीन के दुष्परिणामो से खुन की गुठलीया जमने की वजह से हुई भी और उनके पिता द्वारा दायर याचिका मे बॉम्बे हाय कोर्ट ने बिल गेटस, अदार पुणावाला को १००० करोड़ रूपये जुर्माने का नोटीस जारी किया है।
भारत मे भी वैक्सीन के दुष्परीणामो से कई मौते हुई है और इस बात को केन्द्र सरकार की AEFI समीती मे माना है।
लेकिन उसी जानलेवा वैक्सीन को उसके दुष्परीणामो को छुपाकर भारत देश की करोडो जनता को दिया गया। उसके खिलाफ IMA ने कोई आवाज नही उठाई। उसके खिलाफ बाबा रामदेव ने आवाज उठाई,तो IMA ने उस जानलेवा वैक्सीन के समर्थन मे सुप्रीम कोर्ट मे शपथपत्र दिया। इससे यह साबित हो जाता है की IMA को आम आदमी के जान की चिंता नही है बल्कि वे फार्मा माफिया के फायदे के लिए काम कर रहे है।
Universal Declaration on Bioethics & Human Rights, 2005 और Montgomery v. Lanarkshire Health Board (General Medical Council intervening), [2015] 2 WLR 768, मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दिये गये निर्देशानुसार हर डॉक्टर का यह फर्ज है की वो किसी भी पेशंट को कोई भी दवाई (चिकीत्सा) देने से पहले उसे उस दवाई/ वैक्सीन या चिकीत्सा के सारे दुष्परीणामों को पेशेट को समझने वाली भाषा मे बताये और पेशंट को यह भी बताये अगर वो उस दवाई /वैक्सीन या चिकित्सा से ईलाज नहीं करवाना चाहते तो उस पेशंट के पास अन्य कौनसी चिकीत्सा पध्दतीया और दवाईया जैसे आयुर्वेद, नॅचरोपॅथी जैसे पर्याय उपलब्ध है।इस इन नियमो का उल्लंघन करने वाले डॉक्टर्स का लाइसेंस कैन्सिल हो सकता है और वह डॉक्टर, पिडीत पेशंट और उसके परिवारों को मुआवजा देने के लिए बाध्य है।
इसलिए IMA और उनके वकिल पी. एस. पटवालीया तथा अन्य के खिलाफ भी करवाई की मांग की गई है।
इसके पहले भी सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने IMA जैसे बेईमान याचिकाकर्ता और उन्हें झूठा शपथपत्र बनाने में मदद करने वाले तथा गलत क़ानूनी प्रावधान के आधारपर अपने विरोधी पक्षकार के खिलाफ आदेश प्राप्त करने वाले वकीलों के खिलाफ कोर्ट अवमनना की कारवाई कर उन्हें सजा दी है। उनके खिलाफ बार कौन्सिल में अनुशासन कारवाई का प्रस्ताव भेजा है, भा.दं.सं. की धाराओं के FIR का आदेश दिया है और सिनिअर कौन्सिल (वकील ) का दर्जा छीनने का आदेश भी दिया है। उसमे एड. आर. के. आनंद का नाम है।
हल ही में भा.दं.सं. ३०७ की एक आरोपी RTO अधिकारी गीता शेजवळ के मामले में वरीष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा द्वारा सुप्रीम कोर्ट से धोखाधड़ी करके भ्र्ष्टाचार करके, झूठ बोलके और गैर क़ानूनी तरीके से भा.दं.सं. ३०७ के गंभीर मामले में जमानत दिलवाने का मामला उजागर हुवा है और उसके लिए एड सिद्धार्थ लूथरा को जेल भेजकर उनका सिनीयर कौन्सिल (वकील ) का दर्जा छीनने के लिए याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है। उस मामले में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बार कौन्सिल ऑफ़ इंडिया को शिकायत की कॉपी भेजकर कारवाई करने के निर्देश दिए है।