बाबा रामदेव और पतंजली आयुर्वेद के खिलाफ गलत टिप्पणी करने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ केस दायर।
इंडियन लॉयर्स एंड ह्यूमन राइट्स एसोसिएशन की और से एड. नीलेश ओझा द्वारा राष्ट्रपती और चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया के पास शिकायत दर्ज।
जज अहसानुद्दीन अमानुल्ला और पी. के. मिश्रा द्वारा सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के आदेशों के खिलाफ जाकर गैरकानूनी धमकी देने का आरोप।
जज के खिलाफ IPC के धारा १६६,२१९, ४०९, १२०(B), ३४ के तहत कानूनी करवाई कर जजेस को तुरंत बर्खास्त करने की मांग।
आरोपी जजेस द्वारा ॲलोपॅथी के फार्मा माफियाओ को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए पद का और सरकारी संपत्ति का दुरूपयोग करने का आरोप।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन Indian Medical Association (IMA) के खिलाफ भी क्रिमिनल केस दर्ज करके उनका लायसेंस रद्द करने की मांग।
IMA द्वारा फार्मा माफियाओ को मदत करने के लिए ॲलोपॅथी दवाईयो और वॅक्सीन के जानलेवा दुष्परिणामों को छुपाकर आयुर्वेद, नॅचरोपॅथी जैसी दुष्परीणामरहित ज्यादा असरदार और किफायती चिकित्सा पद्धति को बदनाम करने की साजिश का पर्दाफाश।
यूनिव्हर्सल हेल्थ ऑर्गनाझेशन ,अव्हेकन इंडिया मूवमेंट, इंडियन बार एसोसिएशन समेत देशभर के विभिन्न संगठनो द्वारा Indian Medical Association (IMA ) की निंदा।
Indian Medical Association (IMA) के खिलाफ देशभर में फूटा गुस्सा। क्रिमिनल केसेस दायर होने की संभावना।
संविधान पीठ द्वारा बनाये गए कानून में सुप्रीम कोर्ट के जजेस को स्पष्ट हिदायत दी गई है की वे कानून के दायरे से बाहर जाकर कोई भी आदेश पारीत नहीं कर सकते और सरकारी संस्थानों के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण नहीं कर सकते।
नई दिल्ली :- ॲलोपॅथी कंपनीयो को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए फार्मा माफियाओ के इशारे पर Indian Medical Association (IMA ) द्वारा पतंजली आयुर्वेद और रामदेव बाबा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमे ॲलोपॅथी दवाईयो और वैक्सीन के जानलेवा दुष्परिणाम को छुपाकर उन्हे असरदार दिखाकर आयुर्वेदिक ,नॅचारोपॅथी जैसी ज्यादा बेहतर, असरदार, हानिरहित तथा सस्ती चिकित्स्ता पद्धत्ति को नीचा दिखाकर उसके द्वारा ईलाज करने वाले डॉक्टर, चिकित्स्क आदि को धमकाकर जनता की सेवा करने से परावृत्त करने का आपराधिक षड्यंत्र रचा गया था।
नवंबर 2023 को उस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जज श्री अहसानुद्दीन अमानुल्ला ने यह धमकी दी की वे पतंजली के सभी कंपनीयो पर ताला लगाकर हर प्रॉडक्ट पर १ करोड़ रूपये का जुर्माना लगायेंगे।
हलाकि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं हैं जिसमे सुप्रीम कोर्ट के जज को किसी दवाई कंपनी को ताला लगाने और 1 करोड़ रुपये प्रति प्रॉडक्ट जुर्माना लगाने का अधिकार दिया गया हैं। अगर बाबा रामदेव द्वारा किसी भी दवाई के उत्पादन में किसी भी नियम का उल्लंघन किया गया हैं तो तो ड्रग्स एंड मॅजिक रेमेडीस एक्ट , कॉस्मेटिक एक्ट ‘ आदि कानूनों के तहत करवाई का अधिकार सिर्फ सम्बंधित अधिकारी को दिया गया हैं और केस सिर्फ स्थानीय अदालत में चल सकता हैं।
इसके पहले सुप्रीम कोर्ट के कुछ जज द्वारा पद का दुरूपयोग कर मजिस्ट्रेट कोर्ट के अधिकार खुद इस्तेमाल करके एक IPS पुलिस अधिकारी M.S. Ahlawat और अन्य पुलीस अधिकारियो को गैरकानूनी तरीके से सजा देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट की गलती मानी थी और उस सजा को ख़ारिज कर दिया था। [M.S. Ahlawat v. State of Haryana, (2000) 1 SCC 278]
तथा सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के सभी जजेस को चेतावनी दी थी के अपने अधिकार क्षेत्र से बहार जाकर किसी भी कानूनी प्रक्रिया को बायपास करके किसको भी खुद सजा देना उनका लाइसेंस रद्द करना ऐसे आदेश पारित ना करे. [Supreme Court Bar Assn. v. Union of India, (1998) 4 SCC 409]
लेकिन जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्ला ने अपने पद का दुरुपयोग करके रामदेव बाबा को गैरकानूनी तरीके से धमकी दे डाली की वे पतंजली की सारी कम्पनिया बंद कर देंगे और हर दवाई पर १ करोड़ रुपये जुर्माना लगा देंगे तथा देश के किसी भी कोर्ट को बाबा रामदेव और कंपनी की कोई भी सुनवाई नहीं होने देंगे।
अपने अधिकार क्षेत्र से बहार जाकर पद का दुरूपयोग करके गैरकनूनी काम करने और आदेश पारित करने वाले जजस के खिलफ IPC १६६, २१९, ४०९, १२०(B), ३४ की आदी धाराओं में 7 साल और उम्र कैद तक की सजा का प्रावधान है।
वैज्ञानिक शोधपत्र मे यह पाया गया की कोरोना वैक्सीन से कोरोना महमारी मे कोई भी भरौसेलायक सुरक्षा नही मिलती है बल्कि इस वैक्सीन के जानलेवा दुष्परीणाम है। कोव्हिशील्ड वैक्सीन को मौत के दुष्परीणामो की वजह से 21 युरोपियन देशो मे पाबंदी लगा दी गई थी।
शोध मे यह भी पाया गया की ज्यादा वैक्सीन देने वाले देशो मे ज्यादा मौते हुई है और vaccine का खतरा कोरोना से 98 गुना ज्यादा हानिकारक है।
शोध मे यह भी पाया गया की vaccine लेनेवाले लोगो मे cancer का खतरा 10,000 गुणा बढ़ गया है।
डॉ. स्नेहल लुणावत की मौत कोव्हीशील्ड वैक्सीन के दुष्परिणामो से खुन की गुठलीया जमने की वजह से हुई भी और उनके पिता द्वारा दायर याचिका मे बॉम्बे हाय कोर्ट ने बिल गेटस, अदार पुणावाला को 1000 करोड़ रूपये जुर्माने का नोटीस जारी किया है।
भारत मे भी वैक्सीन के दुष्परीणामो से कई मौते हुई है और इस बात को केन्द्र सरकार की AEFI समीती मे माना है।
लेकिन उसी जानलेवा वैक्सीन को उसके दुष्परीणामो को छुपाकर भारत देश की करोडो जनता को दिया गया। उसके खिलाफ IMA ने कोई आवाज नही उठाई। उसके खिलाफ बाबा रामदेव ने आवाज उठाई,तो IMA ने उस जानलेवा वैक्सीन के समर्थन मे सुप्रीम कोर्ट मे शपथपत्र दिया। इससे यह साबित हो जाता है की IMA को आम आदमी के जान की चिंता नही है बल्कि वे फार्मा माफिया के फायदे के लिए काम कर रहे है।
Universal Declaration on Bioethics & Human Rights, 2005 और Montgomery v. Lanarkshire Health Board (General Medical Council intervening), [2015] 2 WLR 768, मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दिये गये निर्देशानुसार हर डॉक्टर का यह फर्ज है की वो किसी भी पेशंट को कोई भी दवाई (चिकीत्सा) देने से पहले उसे उस दवाई/ वैक्सीन या चिकीत्सा के सारे दुष्परीणामों को पेशेट को समझने वाली भाषा मे बताये और पेशंट को यह भी बताये अगर वो उस दवाई /वैक्सीन या चिकित्सा से ईलाज करवाना चाहते तो उस पेशंट के पास अन्य कौनसी चिकीत्सा पध्दतीया और दवाईया जैसे आयुर्वेद, नॅचरोपॅथी जैसे पर्याय उपलब्ध है।इस इन नियमो का उल्लंघन करने वाले डॉक्टर्स का लाइसेंस कैन्सिल हो सकता है और वह डॉक्टर, पिडीत पेशंट और उसके परिवारों को मुआवजा देने के लिए बाध्य है।
इन्ही कानूनों के तहत IMA के खिलाफ कानूनी कारवाई की मांग की गई है।