दिशा सालियन प्रकरण में फैलाए जा रहे दुष्प्रचार (False Narrative) का खंडन

आरोपियों एवं उनके प्रभाव में कार्यरत व्यक्तियों द्वारा एक सुनियोजित दुष्प्रचार (false narrative) जनमानस में फैलाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य जनता को भ्रमित करना, सच्चाई से भटकाना, तथा अपराधियों को कानूनी कार्यवाही से संरक्षण देना है। इस दुष्प्रचार के अंतर्गत यह झूठा प्रचारित किया जा रहा है कि “दिशा सालियन के पिता पाँच वर्षों बाद क्यों जागे?”।
यह कथन न केवल तथ्यहीन एवं भ्रामक है, बल्कि न्याय के विरुद्ध एक गंभीर षड्यंत्र है, जो पीड़ित परिवार की गरिमा और उनके संवैधानिक अधिकारों को ठेस पहुँचाता है।
तथ्यात्मक स्थिति इस प्रकार है:
१. घटना के समय राजनीतिक दबाव – दिशा सालियन की मृत्यु के उपरांत लगभग ढाई वर्षों तक (जून 2020 से जून 2022) महाराष्ट्र में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में सरकार कार्यरत थी, जिसमें स्वयं आरोपीगण—मुख्यमंत्री एवं मंत्री—उच्च संवैधानिक पदों पर आसीन थे। स्वाभाविक रूप से, इस अवधि में पीड़ित परिवार द्वारा खुलकर न्याय की मांग करना न केवल असुरक्षित, बल्कि अत्यंत जोखिमपूर्ण था।
२. पीड़ित परिवार पर दबाव – इस दौरान सालीयन परिवार पर गंभीर राजनीतिक और मानसिक दबाव बनाया गया। उन्हें भ्रमित किया गया, दबाया गया, और तत्कालीन शिवसेना प्रवक्ता श्रीमती किशोरी पेडनेकर को विशेष रूप से भेजकर उनके ऊपर दबाव डाला गया कि वे मीडिया या कानूनी मंच पर कुछ न कहें।
३. सत्ता परिवर्तन के बाद अवसर – जुलाई 2022 में जब राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ, तब स्थिति में थोड़ी पारदर्शिता आई। दिसंबर 2022 में राज्य सरकार ने इस मामले को पुनः खोलने और Special Investigation Team (SIT) गठित करने का निर्णय लिया, परंतु उस समय SIT का गठन नहीं हो सका।
४. PIL दायर एवं SIT गठन – सितम्बर 2023 में मानवाधिकार कार्यकर्ता श्री राशिद खान पठान द्वारा एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गई। इसके परिणामस्वरूप, 11 दिसंबर 2023 को SIT का गठन किया गया।
५. बयान की तत्परता से रिकॉर्डिंग – उसी दिन, यानि 11.12.2023 को ही श्री सतीश सालियन, पिता दिवंगत दिशा सालियन, स्वयं SIT के समक्ष उपस्थित हुए और अपना विस्तृत बयान दर्ज कराया। उन्होंने अपनी पुत्री की मृत्यु में “फाउल प्ले” की स्पष्ट आशंका जताई और निष्पक्ष जांच की मांग की।
वास्तविकता यह है:
श्री सतीश सालियन ने जैसे ही अपने परिवार पर से राजनीतिक दबाव हटने के बाद एक न्यूनतम स्वतंत्र वातावरण प्राप्त किया, उन्होंने विलंब न करते हुए अपने सभी कानूनी अधिकारों का उपयोग किया। उन्होंने SIT के समक्ष बयान दर्ज कराया, अपराधियों के विरुद्ध कार्यवाही की मांग की, और लगातार न्याय की प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी निभाई।
उल्लेखनीय है कि उपरोक्त समस्त घटनाक्रम एवं दबाव की रणनीतियाँ—जिनमें राजनीतिक हस्तक्षेप, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता, तथा श्रीमती किशोरी पेडनेकर द्वारा पीड़ित परिवार पर बनाया गया दबाव शामिल है—स्वयं दिशा सालियन के पिता श्री सतीश सालियन ने अपने शपथपत्र (Affidavit) में स्पष्ट रूप से उल्लेखित किया है। उन्होंने शपथपूर्वक यह बयान दिया है कि उनकी पुत्री की मृत्यु एक सुनियोजित अपराध का परिणाम है, जिसे प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा दबाने का भरसक प्रयास किया गया, और उसी क्रम में उन्हें एवं उनके परिवार को भी लगातार भयभीत एवं गुमराह किया गया।
जब तक सत्ता में आरोपीगण थे, तब तक परिवार के लिए कोई स्वतंत्र एवं निष्पक्ष कदम उठाना संभव नहीं था। परंतु जैसे ही राजनीतिक दबाव हटा और SIT का गठन हुआ, उन्होंने बिना किसी विलंब के अपना बयान दर्ज कराया और पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच की मांग की।
यह शपथपत्र, जिसमें पीड़ित पिता ने समस्त घटनाक्रम को साक्ष्य सहित प्रस्तुत किया है, इस तथ्य को सिद्ध करता है कि “पाँच वर्षों बाद जागने” जैसी झूठी बातें केवल जनता को भ्रमित करने और दोषियों को संरक्षण देने की कोशिश हैं, जिनका कोई तथ्यात्मक आधार नहीं है।
निष्कर्षतः यह स्पष्ट किया जाना अत्यावश्यक है कि पीड़ित परिवार द्वारा की गई प्रत्येक विधिक कार्रवाई समयबद्ध, उचित, और परिस्थिति के अनुसार रही है। न्याय में देरी का कारण परिवार नहीं, बल्कि आरोपियों का प्रभाव, सत्ता की भागीदारी और प्रारंभिक जांच में की गई गंभीर लापरवाहियाँ रही हैं।
विलंबित शिकायत पर भी अपराधियों को राहत नहीं – सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्णय
इस संदर्भ में यह अत्यंत प्रासंगिक है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने State of Chhattisgarh v. Aman Kumar Singh, (2023) 6 SCC 559 में यह स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया है कि यदि किसी गंभीर अपराध के मामले में शिकायत विलंब से—यहाँ तक कि कई वर्षों के बाद—दर्ज की जाती है, तो केवल इस कारण से आरोपियों को आरोपों से मुक्त नहीं किया जा सकता।
यह भी कहा गया कि यदि शिकायत को राजनीति से प्रेरित बताया जाए, तब भी मात्र इस आरोप के आधार पर FIR को खारिज नहीं किया जा सकता, जब तक कि उसके समर्थन में पर्याप्त एवं ठोस साक्ष्य उपलब्ध हों। यदि आरोपों की पुष्टि करने वाले प्रथम दृष्टया प्रमाण (prima facie evidence) विद्यमान हैं, तो चाहे मामला वर्षों बाद ही क्यों न दर्ज किया गया हो, न्यायिक प्रक्रिया चलाना और दोषियों को दंडित करना आवश्यक और न्यायसंगत है।
In cases involving serious offences, even if the complaint is filed belatedly or allegations are made that it is politically motivated, such grounds alone are not sufficient to quash the FIR or relieve the accused, provided there is prima facie material indicating the commission of the offence.”
अतः, यह स्थापित विधिक सिद्धांत है कि केवल समय की देरी अथवा राजनीतिक पूर्वग्रह के आरोप किसी भी गंभीर अपराध की जांच को रोकने या FIR को अमान्य घोषित करने का पर्याप्त आधार नहीं हो सकते। आरोपीगण इस आधार पर किसी प्रकार की कानूनी राहत पाने के अधिकारी नहीं हैं।