सबूत सामने आते ही भागे आदित्य ठाकरे — ‘नैतिकता’ का नकाब जनता के सामने फट गया! कोर्ट में चुप्पी हार का खुली कबूलनामा?

मुंबई | 1 मई 2025: दिशा सालियन की रहस्यमयी मौत मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट में जवाब देने का दावा करने वाले आदित्य ठाकरे, जब असली सबूत कोर्ट में पेश हुए — तब न जवाब दे पाए, न अदालत में उपस्थित हुए।
आज वे खुद अदालत से फरार हैं — और जनता पूछ रही है: सच से भागना ही क्या ठाकरे स्टाइल राजनीति है?
22 मार्च 2025 को दिशा सालियन के पिता श्री सतीश सालियन ने हाईकोर्ट में एक गंभीर याचिका दाखिल की, जिसमें आदित्य ठाकरे पर सामूहिक बलात्कार और हत्या जैसे आरोप लगाए गए।
याचिका के साथ फॉरेंसिक रिपोर्ट, डिजिटल साक्ष्य, कॉल डेटा रिकॉर्ड, और गवाहों के बयान भी न्यायालय में प्रस्तुत किए गए।
उस समय आदित्य ठाकरे और उद्धव ठाकरे ने मीडिया में सार्वजनिक रूप से कहा था — “हम अदालत में जवाब देंगे।”
लेकिन जैसे ही मामला गंभीर होता गया और एक-एक कर सबूत कोर्ट में दाखिल होने लगे, ठाकरे परिवार ने मीडिया से दूरी बना ली। जवाब देने की बात टाल दी और अदालत की सुनवाई में चुप्पी साध ली।
2 अप्रैल 2025 को जब याचिका पर पहली सुनवाई हुई, सीनियर एडवोकेट सुदीप पासबोला आदित्य ठाकरे की ओर से उपस्थित हुए।
मगर इसके बाद — कोई हस्तक्षेप याचिका नहीं, कोई जवाब नहीं, और 30 अप्रैल को कोर्ट में कोई उपस्थिति तक नहीं।
7 अप्रैल 2025 को श्री सतीश सालियन ने कोर्ट में 166 पन्नों का विस्तृत शपथपत्र, 100 से अधिक पन्नों के दस्तावेज, और फॉरेंसिक रिपोर्ट, कॉल डेटा रिकॉर्ड, स्टिंग ऑपरेशन फुटेज आदि प्रमाण पेश किए।
सूत्रों के अनुसार, 10 से अधिक पेन ड्राइव्स में गंभीर डिजिटल साक्ष्य अब भी उनकी कानूनी टीम के पास सुरक्षित हैं।
30 अप्रैल को क्या हुआ
हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अधिवक्ता निलेश ओझा और अधिवक्ता तनवीर निज़ाम की दलीलें सुनने के बाद राज्य सरकार की एसआईटी से सीधा सवाल पूछा —
“अब तक अपराध क्यों दर्ज नहीं किया गया? जांच कैसे चल रही है?”
कोर्ट ने आदेश दिया कि सतीश सालियन के आरोपों पर विस्तृत जवाब सहित हलफनामा प्रस्तुत किया जाए।
क्या यह चुप्पी है हार की स्वीकृति?
कोर्ट में मौन एक कानूनी विकल्प हो सकता है, लेकिन लोकतंत्र में यह मौन जनता की नजर में अपराध की स्वीकृति बन जाता है।
जो नेता कैमरे के सामने कह रहे थे — “हम सच का सामना करेंगे,”
वही आज कोर्ट में सवालों का सामना करने से भाग रहे हैं।
यह चुप्पी सिर्फ चुप्पी नहीं — यह अपराध की कबूलनामा है।
आदित्य ठाकरे पहले भी बोले झूठ — बार-बार जनता को गुमराह किया
1. पहला झूठ:
आदित्य ठाकरे ने कहा था कि 8 जून 2020, जब दिशा सालियन की मौत हुई, वह डोंबिवली अस्पताल में थे क्योंकि उनके नाना श्री माधव पाटणकर का निधन उसी दिन हुआ था।
जबकि रिकॉर्ड बताते हैं कि उनका निधन 14 जून को हुआ — यानी एक झूठा अलिबी गढ़ा गया।
2. दूसरा झूठ:
14 नवंबर 2022 को उन्होंने मीडिया से कहा:
“CBI ने केस क्लोज कर दिया है, वही मेरा जवाब है।”
लेकिन CBI ने आधिकारिक बयान जारी किया —
“ना कोई क्लोजर रिपोर्ट फाइल की गई है, ना ही किसी को क्लीन चिट दी गई है।”
CBI ने ही उनके बयान को झूठा साबित कर दिया।
अब सवाल देश के सामने है:
जो नेता बार-बार झूठ बोलकर जनता को गुमराह करता रहा है, क्या उसे सार्वजनिक जीवन में बने रहने का नैतिक अधिकार है?
क्या जवाबदेही से भागना ही अब ‘ठाकरे स्टाइल राजनीति‘ बन चुकी है?