[ब्रेकिंग] सेम – सेक्स मॅरीज (समलिंगी विवाह) की सुनवाई से चीफ जस्टीस चंद्रचूड़ अलग हो।
संविधान पीठ के निर्णयानुसार पूर्वाग्रह और लगाव होने की वजह से जस्टीस चंद्रचूड़ बेंच पर बैठने के लिए अपात्र।
अपात्र होते हुए भी सुनवाई कर सुप्रीम कोर्ट की सम्पत्ती और संसाधनों का दुरूपयोग करने और संविधान पीठ के आदेशों की अवमानना के मामले में जस्टीस चंद्रचूड़ के खिलाफ IPC 166, 219, 409, 120(B), 34 के तहत एफ. आय. आर. दर्ज करने का आदेश सी. बी. आय. को देने का आदेश देने की मांग।
देश के प्रसिद्ध मानव अधिकार कार्यकर्ता तथा ‘सुप्रीम कोर्ट अँड हाय कोर्ट लिटीजंटस एसोसिएशन’ के अध्यक्ष रशीद खान पठान ने दायर की याचिका।
‘सुप्रीम कोर्ट लॉयर्स एसोसिएशन’, ‘इंडियन बार एसोसिएशन’ सहित देशभरसे अनगिनत लोगो ने दिया रशीद खान पठाण, मुर्सलीन शेख, ॲड. निलेश ओझा, ॲड. विजय कुर्ले और असोसिएशन के अन्य लोगो को समर्थन।
‘इन- हाऊस -प्रोसिजर’ के नियमो तहत जस्टीस चंद्रचूड़ से सभी काम तुरंत निकालने की और उन्हें महाभियोग चलाकर पद से तुरंत बरखास्त करने की मांग।
जस्टीस चंद्रचूड़ द्वारा अपने पद का दुरूपयोग करके जॉर्ज सोरोस जैसे देशद्रोही लोगो का अभियान चलाकर देश के विभिन्न जाती और समुदायों में आपस में एक दुसरे के प्रती द्वेषभावना का प्रचार कर के देश को तोड़ने का मकसद साबित करनेवाले सबुत राष्ट्रपतीजी को पेश।
नई दिल्ली:- सुप्रीम कोर्ट द्वारा सभी जजों के लिए बनाई गई आचार संहिता और संविधान पीठ ने बनाये गए नियमो के मुताबिक अगर किसी भी जज का किसी भी व्यक्ती या विषय के प्रति प्रत्यक्ष य अप्रत्यक्ष रूपसे संबंध , लगाव, समर्थन या विरोध हो तो वो जज ऐसे किसी भी मामले की सुनवाई नहीं कर सकता। उसे उस मामले से खुद को दूर रखना चाहिए और अगर वह जज ऐसे किसी मामले की सुनवाई करता है और कोई आदेश भी पारीत करता है तो ऐसे आदेश गैरकानूनी माने जाते है और निरस्त हो जाते है। [Gullapalli Nageshwar Rao Das Vs. Andhra Pradesh 1959 Supp (1) SCR 319, State Vs. Davinder pal Singh (2011) 14SCC 770, REGINA v. BOW STREET METROPOLITAN STIPENDIARY MAGISTRATE and Others, Ex parte PINOCHET UGARTE (No. 2), [1999] 2 WLR 272]
2. इसके अलावा जजेस को बार बार जनता में जाकर साक्षात्कार, भाषण देने पर भी पाबंदी है। उसे किसी भी वकील से व्यक्तीगत दोस्ती बढ़ाने और अपने से परिचित किसी भी व्यक्ति की कोई भी केस सुनने पर पाबंदी है।
हर जज को यह शपथ दिलाई जाती है की, वो किसी भी प्रकार के पक्षपात के बिना निष्पक्ष होकर संविधान और कानून के दायरे रहकर अपने कर्तव्य का पालन करेंगे। इस शपथ का भंग करनेवाले जज को पद से हटाने का संविधान में महाभियोग प्रस्ताव का प्रावधान है। [K.C. Chandy Vs. R. Balakrishna Pillai AIR 1986 Ker 116, In Re Pollard LR 2 PC 106 , State of Punjab v. Davinder Pal Singh Bhullar, (2011) 14 SCC 770, Re : C. S. Karnan (2017) 7 SCC 1 ]
3. सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में ‘इन -हाऊस – प्रोसिजर’ नामका नया कानून बनाया है इसके तहत हाय कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजेस के खिलाफ आरोपो की तहक़ीकात कर महाभियोग होने के पहले भी जज के सारे न्यायिक कामकाज निकालने मतलब उन्हें निलंबित करने का भी प्रावधान किया है। सुप्रीम कोर्ट अपनी तरफ से आरोपी जज / चीफ जस्टीस के खिलाफ राज्यसभा को महाभियोग का प्रस्ताव भेज सकता है। [ Additional District and Sessions Judge ‘X’ (2015) 1 SCC 799.]
4 . उसी ‘इन -हाउस – प्रोसीजर’ के तहत पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ मामले की तहकीकात के लिए दूसरे वरिष्ठ जज श्री. एन.व्ही. रमन्ना की अध्यक्षता में समिति बनाई गई थी। लेकिन जस्टीस रमन्ना के खिलाफ जस्टिस गोगोई से घनिष्ट सम्बन्ध होने के शिकायतकर्ता के आरोप के बाद जस्टिस रमन्ना ने उस समिति से इस्तीफा देकर खुद को अलग कर लिया था ।
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5. लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ ने इन सभी नियमोको ताक में रखकर समलिंगी विवाह के याचिका की सुनवाही के लिए खुद के अध्यक्षता में ५ सदस्यीय संविधान पीठ की स्थापना की ।
6. उस मामले की सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ इसलिए अपात्र थे क्योंकि वे हमेशा से समलिंगी लोगो के शारीरिक सम्बन्ध और LGBTQA+ समुदायों के अधिकारों के पक्षधर रहे हे. वे इसके समर्थन में अनेक भाषण दे चुके हे और उसकी वकालत कई वर्षो से हर मंच पर करते रहे है. इसके आलावा इसी बिरादरी के वकील सौरभ किरपाल से उनके घनिष्ट सम्बन्ध है. सौरभ किरपाल के पिता ने चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ को मनोनित किया था तथा चीफ जस्टिस चंद्रचुड ने सौरभ किरपाल का नाम दिल्ली हाईकोर्ट जज के लिए मनोनीत किया है उसमे IB ने सौरभ किरपाल के खिलाफ गोपनीय रिपोर्ट देकर उसे जज बनाने पर आपत्ती दर्ज की तब उस के विपरीत रिपोर्ट पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने सौरभ किरपाल की ओर से सरकार से झगड़ा कर लिया था.
इस बारे में सारे सबूत शिकायत में मौजूद है.
7. ऐसी परिस्थिति में जस्टिस चंद्रचूड़ को समलिंगी विषय पर होने वाले केसेस और अॅड. सौरभ किरपाल के मामले में वकील होने के कारण से मामले में जज बनकर बैठने का कोई अधिकार नही रह जाता । पर उन्होंने सभी नियमो, जजेस इथिक्स कोड और संविधान पीठ के आदेशो को ताक में रखकर सुर उनकी खुली अवमानना करते हुए खुद की अध्यक्षता वाले संविधानपीठ के पास मामले की सुनवाई रखी.
हाल ही में खुद जस्टिस चंद्रचूड़ ने कलकत्ता हाय कोर्ट के जस्टिस श्री. अभिजीत गंगोपाध्याय द्वारा ममता बॅनर्जी के भांजे श्री. अभिषेक बॅनर्जी के मामले टी.व्ही. इंटरव्ह्यु देने पर जज को फटकार लगाकर मामले की सुनवाई दूसरे जज को सौपने का आदेश दिया था।
8. पुरे देश ने देखा की कैसे चीफ जस्टिस ने अपना छुपा अजेंडा चलाने के लिए मामले का विरोध करनेवाले देश के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के साथ अपमानजनक बर्ताव किया.
9. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में पहले ही दिन मामले की सुनवाई पर आपत्ती लेते हुए बताया की देश के संविधान के तहत कानून बनाने का अधिकार केवल संसद को है सुप्रीम कोर्ट कोई कानून नहीं बना सकता, नाही संसद को ऐसा कोई आदेश दे सकता है.
In Suresh Seth v. Commr., Indore Municipal Corpn., (2005) 13 SCC 287 it is ruled as under;
“5. […] That apart this Court cannot issue any direction to the legislature to make any particular kind of enactment. Under our constitutional scheme Parliament and Legislative Assemblies exercise sovereign power to enact laws and no outside power or authority can issue a direction to enact a particular piece of legislation. In Supreme Court Employees’ Welfare Assn. v. Union of India [(1989) 4 SCC 187: 1989 SCC (L&S) 569] (SCC para 51) it has been held that no court can direct a legislature to enact a particular law.”
10. सुप्रीम कोर्ट की ७ जज की संविधान पीठ ने जस्टीस कर्णन मामले में स्पष्ट कानून बनाया है की कोर्ट अवमानना करनेवाले जज खिलाफ कोई भी सामान्य नागरिक भी याचिका दायर कर सकता है और कोर्ट को उस पर विचार कर आदेश करना पड़ेंगा। सुप्रीम कोर्ट जस्टीस कर्णन को 6 महिने जेल भी सजा सुनाई थी। [Re: C. S. Karnan (2017) 7 SCC 1]
11. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है की , कोई भी सुप्रीम कोर्ट का जज अगर सुप्रीम कोर्ट के बनाये गए आदेश और नियमो के खिलाफ काम करता है तो वह सुप्रीम कोर्ट का जज कोर्ट अवमानना का दोषी रहेगा। ऐसे जज को सेवासे बर्खास्त किया जाना चाहिए। ऐसे जजों के खिलाफ सीबीआई ने केस दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार भी किया है। आरोपपत्र भी दायर किये गए है। [Subrata Roy Sahara v. Union of India, (2014) 8 SCC 470, Official Liquidator v. Dayanand, (2008) 10 SCC 1, Supdt. of Central Excise v. Somabhai Ranchhodhbhai Patel, (2001) 5 SCC 65, In Re M.P. Dwivedi, (1996) 4 SCC 152, Prabha Sharma v. Sunil Goyal, (2017) 11 SCC 77, K. K. Dhawan (1993) 2 SCC 56, New Delhi Municipal Council v. Prominent Hotels Limited, 2015 SCC OnLine Del 11910, R.R. Parekh v. High Court of Gujarat, (2016) 14 SCC 1, Justice Nirmal Yadav v. Central Bureau of Investigation 2011 SCC OnLine P&H 15415, Shameet Mukherjee v. C.B.I, 2003 SCC OnLine Del 821, K. Ram Reddy v. State of A.P., 1997 SCC OnLine AP 1210, Govind Mehta v. State of Bihar, (1971) 3 SCC 329, Raman Lal v. State of Rajasthan, 2000 SCC OnLine Raj 226, Jagat Jagdishchandra Patel v. State of Gujarat, 2016 SCC OnLine Guj 4517 ]
12. जस्टिस चंद्रचूड़ द्वारा नियमो के खिलाफ जाकर असवैधानिक तरीके से किया गया काम और उस गैरकानूनी काममे सुप्रीम कोर्ट के संसाधनों , समय और पैसो का दुरूपयोग करने की वजह से CJ के खिलाफत IPC 166, 219, 409, 120(B), 34 इत्यादी विभिन्न धाराओं के तहत कारवाई की मांग की की गई है।
13. गौरतलब हो की, भारतीय संविधान के अनुछेद 51 (A) के तहत यह हर नागरिक का कर्तव्य है की वे देश के नागरिको में आपस में सदभावना बटाने के लिए प्रयास करे।
परन्तु चीज जस्टिस हमेशा अपने भाषणों और इंटरव्यूह में झूठी और मनगढंत बाते रचकर विभिन्न जाती, समुदायों और धर्मो के बिच व्देष भावना बढाकर उन्हेंआपस में बाटकर देश को तोड़ने और कमजोर बनाने का काम कर रहे है. इन सबके पीछे जार्ज सोरोस और हार्वड के कुछ देशविरोधी ताकतों की साजिश है ऐसा भी केस में आरोप लगाया गया है. ऐसे सबूतों के साथ चीफ जस्टिस के खिलाफ IPC 153- A, 505, 120(B) अदि धाराओं के तहत करवाई की मांग की गयी है.
ऐसी कई शिकायते राष्ट्रपती के पास विचाराधीन है और उसमे जल्द ही फैसला जाने की संभावना है।