कानून का शासन केवल कागज़ों तक सीमित न रहे, आम नागरिकों को महसूस होना चाहिए — सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत
न्यायाधीशों से सरल, स्पष्ट और आम आदमी की समझ में आने वाली भाषा में फैसले व आदेश लिखने का आह्वान; न्याय व्यवस्था को अधिक सुलभ, मानवीय और नागरिक-केंद्रित बनाने का संदेश.
सीजेआई जस्टिस सूर्यकांत ने न्यायाधीशों से सरल और स्पष्ट भाषा में फैसले लिखने का आह्वान करते हुए कहा कि कानून का शासन केवल कागज़ी अवधारणा नहीं, बल्कि ऐसी वास्तविकता है जिसे आम नागरिकों को महसूस करना चाहिए; इसलिए न्यायिक आदेश आम आदमी की समझ में आने वाली भाषा में होने चाहिए।
नई दिल्ली |
भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने न्याय व्यवस्था को आम नागरिकों के और अधिक निकट लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण और दूरदर्शी संदेश दिया है। उन्होंने कहा कि कानून का शासन कोई सजावटी या औपचारिक वाक्य नहीं, बल्कि एक ऐसी जीवंत वास्तविकता है, जिसे आम लोगों को अपने जीवन में महसूस करना, समझना और उस पर भरोसा करना चाहिए। उनके इस वक्तव्य को न्याय प्रणाली को सरल, पूर्वानुमेय, मानवीय और नागरिक-केंद्रित बनाने की दिशा में बड़ा संकेत माना जा रहा है।
मुख्य न्यायाधीश ने न्यायिक फैसलों में बढ़ती भाषायी जटिलता पर चिंता जताते हुए कहा कि निर्णयों में अत्यधिक कानूनी शब्दावली का प्रयोग न्याय को आम आदमी से दूर कर देता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि न्याय केवल वकीलों और न्यायाधीशों के लिए नहीं, बल्कि उन नागरिकों के लिए भी समझने योग्य होना चाहिए, जिनके जीवन पर अदालतों के आदेशों का सीधा प्रभाव पड़ता है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि यदि न्यायालयों की भाषा दुरूह और अस्पष्ट होगी, तो इससे न्यायपालिका और जनता के बीच दूरी बढ़ेगी और न्याय प्रणाली पर लोगों का भरोसा कमजोर होगा। इसलिए आवश्यक है कि न्यायिक फैसले जनता से संवाद करें, न कि केवल विधि विशेषज्ञों तक सीमित रहें।
न्यायपालिका की भूमिका पर बोलते हुए उन्होंने दोहराया कि कानून का शासन एक जीवित सच्चाई है, जिसे नागरिक महसूस कर सकें, समझ सकें और जिस पर वे निर्भर कर सकें। उनके अनुसार, न्याय को केवल तकनीकी औपचारिकताओं तक सीमित रखने के बजाय उसे सरल भाषा, स्पष्ट तर्क और मानवीय दृष्टिकोण के साथ प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
कानूनी विशेषज्ञों और पर्यवेक्षकों का मानना है कि मुख्य न्यायाधीश की यह सोच कानून को जटिलता से मुक्त कर आम नागरिकों के लिए सुलभ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उनका कहना है कि संदेश बिल्कुल स्पष्ट है—कानून का उद्देश्य केवल पुस्तकों और फैसलों में मौजूद रहना नहीं, बल्कि व्यवहार में नागरिकों की सेवा करना होना चाहिए।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह दृष्टिकोण न्यायपालिका में पारदर्शिता, भरोसे और पहुंच को मजबूत करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि न्याय व्यवस्था वास्तव में उन लोगों के जीवन अनुभवों से जुड़ी रहे, जिनके लिए वह अस्तित्व में है।