वकील संघठन ने बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ और मुख्य न्यायाधीश चंद्रशेखर को भेजा धन्यवाद पत्र

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों पर अॅड. निलेश ओझा को सबूत पेश करने का अवसर देने के लिए व्यक्त किया आभार
पहले भी एक समान मामले में, एड. प्रशांत भूषण ने अवमानना नोटिस का जवाब देते हुए आठ पूर्व मुख्य न्यायाधीशों पर भ्रष्टाचार के आरोप संबंधी दस्तावेज़ पेश किए थे, जिनमें यह भी दर्शाया गया था कि उन्होंने आदेश पारित करते समय किस प्रकार भ्रष्ट आचरण किया।
मुंबई (17.09.2025): बॉम्बे हाईकोर्ट की पाँच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार, झूठे साक्ष्य, जाली दस्तावेज़ और पक्षपात जैसे गंभीर आरोपों पर अपनी बात और सबूत पेश करने का अवसर एडवोकेट निलेश ओझा को प्रदान किया। इस अवसर के लिए भारतीय वकील व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की संघटना ने मुख्य न्यायाधीश चंद्रशेखर और माननीय खंडपीठ को धन्यवाद पत्र जारी किया।
इस अवसर पर भारतीय वकील व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की संघटना ने मुख्य न्यायाधीश चंद्रशेखर और माननीय खंडपीठ को धन्यवाद पत्र प्रेषित किया। Supreme Court and High Court Litigants Association के अध्यक्ष राशिद खान पठान तथा भारतीय वकील व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की संघटना के एड. विवेक रामटेके और उपाध्यक्ष मुरसलीन शेख ने संयुक्त रूप से यह आभार पत्र भेजा।
संघटना का निवेदन
संघटना ने कहा कि पाँच न्यायाधीशों की खंडपीठ द्वारा दिनांक 17.09.2025 को दिए गए आदेश में “कुछ गंभीर त्रुटियाँ” अवश्य हैं, परंतु एड. निलेश ओझा को अपनी बात और प्रमाण प्रस्तुत करने का दिया गया अवसर एक स्वागत योग्य कदम है। यह कदम सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा दिए गए मार्गदर्शन के अनुरूप है (Subramanian Swamy v. Arun Shourie, (2014) 12 SCC 344; Amicus Curiae v. Prashant Bhushan, 2022 SCC OnLine SC 1188; Adv. Mahmood Pracha v. Central Administrative Tribunal, 2022 SCC OnLine SC 1029)।
पहले भी एक समान मामले में, एड. प्रशांत भूषण ने अवमानना नोटिस का जवाब देते हुए आठ पूर्व मुख्य न्यायाधीशों पर भ्रष्टाचार के आरोप संबंधी दस्तावेज़ पेश किए थे, जिनमें यह भी दर्शाया गया था कि उन्होंने आदेश पारित करते समय किस प्रकार भ्रष्ट आचरण किया। सर्वोच्च न्यायालय की फुल बेंच ने Amicus Curiae v. Prashant Bhushan (2022 SCC OnLine SC 1188) में उनका स्पष्टीकरण स्वीकार कर अवमानना कार्यवाही समाप्त कर दी थी। लेकिन उस मामले में प्रस्तुत साक्ष्य लगभग १२ वर्षों तक “ठंडी बस्ते” में डाल दिए गए थे। संघटना ने स्पष्ट आशा व्यक्त की कि इस बार ऐसी देरी या निष्क्रियता नहीं होगी।
दिनांक 17.09.2025 को पाँच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने एड. निलेश ओझा को नोटिस जारी कर न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे के विरुद्ध भ्रष्टाचार, झूठे साक्ष्य, जाली दस्तावेज़ और पक्षपात जैसे गंभीर आरोपों पर अपना पक्ष और प्रमाण प्रस्तुत करने को कहा है, तथा इसके लिए १६ अक्टूबर तक प्रतिज्ञापत्र व बचाव निवेदन दाखिल करने का निर्देश दिया गया है।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे पर आरोप
संघटना के पत्र में निम्नलिखित आपराधिक स्वरूप की घटनाओं का उल्लेख किया गया है और कहा गया है कि इनके वीडियो रेकॉर्डिंग व अन्य साक्ष्य अदालत के समक्ष प्रस्तुत किए जाएँगे:
1. चंदा कोचर ज़मानत मामले में जाली नोंद
o Criminal Writ Petition (St.) No. 22494 of 2022 में ज़मानत मंजूर करते समय, न्यायमूर्ति डेरे ने जानबूझकर धारा 409 आईपीसी (आजीवन कारावास योग्य अपराध) को हटाया और 09.01.2023 के आदेश में केवल सात वर्ष की अधिकतम सज़ा दर्शाई।
o यह Arnesh Kumar v. State of Bihar, (2014) 8 SCC 273 का लाभ दिलाने के लिए किया गया बताया गया है।
o इसके अतिरिक्त विशेष सीबीआई न्यायाधीश का आदेश भी नज़रअंदाज़ कर Ram Pratap Yadav v. Mitra Sen Yadav, (2003) 1 SCC 15 के बाध्यकारी दिशानिर्देश का उल्लंघन किया गया।
2. दिलीप मोहिते ज़मानत मामले में जाली नोंद
o ABA No. 1621 of 2019 (आदेश दिनांक 26.07.2019 व 21.08.2019) में ज़मानत मंजूर करते समय, न्यायमूर्ति डेरे ने 19.07.2019 के आदेश में दर्ज धारा 307 आईपीसी (पुलिस अधिकारी की हत्या का षड्यंत्र व पुलिस थाने पर हमला) के निष्कर्ष जानबूझकर छिपाए।
o इससे एनसीपी विधायक दिलीप मोहिते को ज़मानत मिली, जो न्यायिक ईमानदारी को ठेस पहुँचाने वाला तथा Fraud on Power माना गया (Muzaffar Husain v. State of U.P., 2022 SCC OnLine SC 567; Kamisetty Pedda Venkata Subbamma v. Chinna Kummagandla Venkataiah, 2004 SCC OnLine AP 1009)।
3. परिवारिक संबंधों से हितों का टकराव
o न्यायमूर्ति डेरे पूर्व सांसद और शरद पवार गुट की नेता सौ. वंदना चव्हाण की सगी बहन हैं।
o आरोप है कि इस संबंध के कारण संबंधित पक्षकारों को अनुचित लाभ दिया गया और असंबंधित व्यक्तियों के साथ भेदभाव किया गया।
- भ्रष्टाचार व फर्जीवाड़े पर हाईकोर्ट जजों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश
1. Raman Lal v. State, 2000 SCC OnLine Raj 226 में हाईकोर्ट के न्यायाधीश के विरुद्ध एक वकील को झूठे मुकदमे में फँसाने पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया गया।
2. Mohd. Nazer v. Union Territory, MANU/KR/3881/2022 में उच्च न्यायालय की डिवीजन बेंच ने कठोर कार्रवाई करते हुए एक न्यायाधीश को निलंबित कर दिया। उन पर आरोप था कि उन्होंने बनावट न्यायालयीन अभिलेख तैयार कर याचिकाकर्ता को झूठे मुकदमे में फँसाने का प्रयास किया। न्यायालय ने इसे न केवल न्यायिक पद की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाला, बल्कि जनता के न्याय व्यवस्था पर विश्वास को हिलाने वाला आचरण माना।
अदालत ने स्पष्ट किया कि न्यायाधीश ने जानबूझकर झूठे सबूत गढ़े और उनका उपयोग कर निर्दोष व्यक्ति को फँसाने की कोशिश की।
यह आचरण भारतीय दंड संहिता की शपथभंग (Perjury), न्याय प्रक्रिया के दुरुपयोग और गंभीर न्यायिक दुराचार की श्रेणी में आता है।
परिणामस्वरूप, उस न्यायाधीश के विरुद्ध परजरी की कार्यवाही शुरू करने और जाँच अवधि तक निलंबित रखने का आदेश दिया गया।
निष्कर्ष
संघटना ने पत्र के अंत में कहा कि कोई भी न्यायाधीश कानून और संविधान से ऊपर नहीं है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि मुख्य न्यायाधीश इस कार्यवाही को विधि-संगत और बिना विलंब के आगे बढ़ाएँगे।