सुप्रीम कोर्ट की हाईकोर्ट्स को कड़ी चेतावनी: न्याय में मानवीय संवेदना आवश्यक, रोबोटिक व्याख्या नहीं — रोबोट जैसी यांत्रिक और मानवीय विवेक के बिना दिए गए आदेश–निर्णयों से लोगों में ‘कानून मूर्ख है’ ऐसा आभास उत्पन्न होता है।
नई दिल्ली, — सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक और अत्यंत महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए देश की सभी हाईकोर्ट्स को एक कड़ी, साफ और सार्वजनिक चेतावनी दी है कि कानून की व्याख्या को यांत्रिक, रोबोटिक, और भावनाशून्य तरीके से न अपनाएँ। न्यायपालिका का मूल धर्म है मानवीय विवेक, करुणा, व्यावहारिकता और न्यायभाव के साथ कानून का प्रयोग करना।
यह गंभीर टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने हालिया निर्णय P.U. Sidique & Ors. बनाम Zakariya (2025 INSC 1340) में की।
यह निर्णय माननीय न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ द्वारा पारित किया गया है।
“न्याय का कार्य मनुष्यों का है, मशीनों का नहीं” — सुप्रीम कोर्ट
न्यायालय ने कहा कि:
“न्याय देने का दायित्व मनुष्यों पर है, न कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस या कंप्यूटरों पर।”
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून को केवल शब्दशः, तकनीकी, या क्लिक-आधारित तरीके से लागू करना न्याय के मूल उद्देश्य के खिलाफ है। कानून को जीवन के वास्तविक अनुभवों, परिस्थितियों, और मानवीय पीड़ा तथा संवेदना के दृष्टिकोण से समझना आवश्यक है।
यांत्रिक व्याख्या न्याय को ‘विसंगति’ में बदल देती है
कोर्ट ने चेताया कि यदि कानून को बिना संवेदना, बिना कॉमन सेंस और बिना परिस्थितियों की समझ के लागू किया जाए, तो परिणाम अक्सर विनोदी, अन्यायपूर्ण और वास्तविकता से कटे हुए होते हैं।
इस संदर्भ में कोर्ट ने प्रसिद्ध अंग्रेज़ी साहित्यकार चार्ल्स डिकेन्स के उपन्यास Oliver Twist का उल्लेख करते हुए Mr. Bumble की प्रसिद्ध टिप्पणी का हवाला दिया:
“If the law supposes that, the law is an ass.”
(यदि कानून ऐसा मानता है… तो कानून मूर्ख है।)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब न्यायालय सख्त औपचारिकता में फँस जाते हैं और सामान्य बुद्धि, न्याय और तर्क को नज़रअंदाज़ करते हैं, तो जनता में यह धारणा बनती है कि कानून मूर्खता का औज़ार बन गया है, न कि न्याय का।
🔸 हाईकोर्ट्स को निर्देश: टेक्स्ट और न्याय—दोनों का संतुलन अनिवार्य
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि हाईकोर्ट्स कानून की व्याख्या करते समय दो मूल सिद्धांतों के बीच संतुलन बनाएँ:
✔ टेक्स्टुअल निष्ठा — कानून के शब्दों का सम्मान
✔ न्यायपूर्ण व्याख्या — यथार्थ, परिस्थिति, निष्पक्षता और संवेदना का ध्यान
कोर्ट ने कहा कि यदि न्यायालय बिना परिस्थिति को समझे, बिना मानवीय प्रभाव का मूल्यांकन किए, केवल शब्दों की कठोरता के आधार पर फैसला देंगे, तो यह न्याय प्रणाली को खोखला बना देगा।
🔸 AI और रोबोटिक न्याय का कठोर विरोध
सुप्रीम कोर्ट ने बेहद स्पष्ट शब्दों में कहा कि:
- न्यायिक विवेक,
- मानवीय समझ,
- नैतिकता,
- और संवेदनशीलता
AI या किसी कंप्यूटर में नहीं हो सकती। इसलिए न्याय को मशीनों या आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस पर नहीं छोड़ा जा सकता। न्यायिक प्रक्रिया एक मानवीय दायित्व है जिसमें करुणा, संदर्भ, अनुभव, और सामाजिक न्याय का गहरा संबंध है।
🔸 “कानून को न्याय का साधन बनना चाहिए, अत्याचार का नहीं” — सुप्रीम कोर्ट
अंत में अदालत ने कहा कि:
- कानून का काम न्याय को लागू करना है,
- न कि अंधी औपचारिकता को,
- न कि तंत्र की मूर्खता को,
- और न ही ऐसी व्याख्या को जो जनता को यह महसूस करवाए कि “कानून मूर्ख है।”
न्यायपालिका को हमेशा वह रास्ता चुनना चाहिए जो जनता के न्याय, सामाजिक संतुलन, और मानवीय गरिमा को बढ़ावा दे।