सुप्रीम कोर्ट से धोखाधड़ी मामले में बुरे फसे वरिष्ठ अधिवक्ता ॲड. सिद्धार्थ लूथरा .
वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने सुप्रीम कोर्ट से धोखाधड़ी करके झूठ बोलकर जमानत का आदेश प्राप्त करने की बात उजागर होने की वजह से उनके मुवक्किल और उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता 191, 192, 193, 466, 471, 474, 120(B) के तहत FIR और कोर्ट अवमानना कानून,1971 की धारा 2 (c) 12 के तहत कार्रवाई और कठोर सजा देने की मांग ।
साथ में सिद्धार्थ लूथरा का वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा छीनकर उन्हें उम्र भर किसी भी कोर्ट में पैरवी पर भी करने से रोकने का आदेश देकर बार कौंसिल को उनके खिलाफ उनकी वकालत की सनद खारीज करने संबंधी कार्रवाई करने की मांग ।
सुप्रीम कोर्ट लॉयर एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री ईश्वरलाल अगरवाल ने भी चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया को पत्र लिखकर सिध्दार्थ लुथरा, आसिफ कुरैशी और अन्य के खिलाफ करवाई करनेकी मांग की हैं
नई दिल्ली:- विशेष संवाददाता :-
भ्रष्ट आर. टी. ओ (RTO) अधिकारी गीता शेजवळ द्वारा अपने साथी अधिकारी पर सरकारी पिस्टल से गोली चलाने के IPC 307 के गंभीर अपराध में उन्हें जमानत दिलवाने के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने सुप्रीम कोर्ट में साफ झूठ बोल दिया कि इस मामले में श्री. संकेत गायकवाड नाम के दूसरे आरोपी को अग्रिम जमानत मिल चुकी है इसलिए उनके मुवक्कील को भी जमानत दी जाए ।
सुप्रीम कोर्ट ने श्री. सिद्धार्थ लूथरा की बातों पर विश्वास करके आरोपी गीता शेजवळ को जमानत दे दी ।
लेकिन तुरंत ही यह बात उजागर हो गई कि दूसरे आरोपी श्री. संकेत गायकवाड को अग्रिम जमानत नहीं दी गई है ।
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने बार बार कहा है की, झूठ और धोखाधड़ी से प्राप्त किया हुआ जमानत का हो या फिर अन्य कोई भी, वह आदेश ख़ारिज हो जाता है। [State Of Maharashtra Vs. Walchand Hiralal Shah 1996 Cri. L. J. 1102, Union of India Vs. Ramesh Gandhi (2012) 1 SCC 476].
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने अपने कई आदेशों में स्पष्ट निर्देश दिए हैं। कि, कोर्ट से धोखाधड़ी करने में शामील वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता के खिलाफ कोर्ट अवमानना कानून, 1971 की धारा 2 (C) 12 तथा आई.पी.सी. (IPC) की धाराए 191, 192, 193, 466, 471, 474, 120 (B) 34 आदी के तहत केस चलाकर उन्हें कठोर सजा देनी चाहिए और उनके वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा छीनकर उनकी सनद रद्द करके उन्हें वकील का काम करने के लिए आजीवन पाबन्दी लगा देनी चाहिए । [R.K. Anand v. Delhi High Court, (2009) 8 SCC 106, Baduvan Kunhi v. K.M. Abdulla, 2016 SCC OnLine Ker 23602, A Vakil, In re, 1926 SCC OnLine All 365, M. Veerbhadra Rao vs. Tek Chand AIR 1985 SC 28,Ranbir Singh v. State, 1990 SCC OnLine Del 40, Ashok Sarogi Vs. State of Maharashtra 2016 ALLMR (Cri) 3400].
इसके पहले वरिष्ठ अधिवक्ता R.K. Anand को भी ऐसी ही सजा देकर उनपर 25 लाख रूपये का जुर्माना भी लगाया गया था।
अपने मुवाक्कील की तरफसे झूठे शपथपत्र दाखिल करने के मामले में एक वकिल को 10 वर्ष कारावास की सजा दि गई थी। [Ahmad Asrab Vakil, In re, 1926 SCC OnLine All 365]
ऐसे ही एक वकील की अग्रिम जमानत भी हाई कोर्ट ने ख़ारिज कर दी थी. और पुलीस ने उस वकील को गिरफ्तार किया था। [Ashok Kumar Sarogi Vs. State of Maharashtra 2016ALLMR (Cri) 3400]
दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी ऐसे वकिल के खिलाफ फौजदारी क़ानूनी कारवाई के आदेश दिये थे । [Ranbir Singh v. State, 1990 SCC OnLine Del 40]
झूठा शपथपत्र देकर कोर्ट गुमराह करके आदेश प्राप्त करनेवाले दोषीयों के खिलाफ IPC के तहत फौजदारी और कोर्ट अवमानना की कारवाई करके उनपर फौजदारी और कोर्ट अवमानना की कारवाई करके उनपर भारी जुर्माना लगाना चाहिए ऐसे निर्देश सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने बार बार दिये है। [Prominent Hotels Vs. New Delhi Municipal Corporation 2015 SCC OnLine Del 11910]
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे ही एक मामले में 5 करोड़ रूपये जुर्माना लगाया है। [Sarvepalli Radhakrishnan University v. Union of India, (2019) 14 SCC 761]
वकील सिद्धार्थ लूथरा कोर्ट को गुमराह करने और धोखाधड़ी करके आदेश प्राप्त करनेवाले वकिल के नाम से बदनाम है। उनपर भरोसा करनेवाले जजेस खुद मुश्किल में आ गये है।
ज्ञात हो की वकील द्वारा कही गई बातो की सत्यता परखने की जिम्मेदारी जज की होती है। और अगर कोर्ट जज अपनी जिम्मेदारी का ठीक से वहन नहीं करता है तो IPC की धरा 52, 120(B), 219, 218, 191, 192, 466 के तहत ऐसा जज भी सजा का हकदार होता है। [ State of Maharashtra Vs. Kamlakar Bhavsae 2002 ALL MR (Cri) 2640, K. Rama Reddy Vs State 1998 (3) ALD 305, State of Oddisa Vs. Pratima Mohanty 2021 SCC On Line SC 1222, Jagat Jagdishchandra Patel v. State of Gujarat, 2016 SCC OnLine Guj 4517, Kodali Purnchandra Rao Vs. Public Prosecutor, Andhra Pradesh 1975 AIR (SC) 1925, Raman Lal v. State of Rajasthan, 2000 SCC OnLine Raj 226, Govind Mehta v. State of Bihar, (1971) 3 SCC 329]
इंडियन लॉयर्स एंड ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष श्री. मुर्सालिन शेख ने इस बारे में एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की है।