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कानूनी संवाददाता | नागपुर
नागपुर सिविल कोर्ट ने कानूनी समाचार पोर्टल Live Law और उसकी संपादकीय टीम को ₹900 करोड़ के मानहानि मुकदमे में समन जारी किया है। यह मुकदमा अधिवक्ता पार्थो सरकार द्वारा दायर किया गया है। अधिवक्ता सरकार, दिवंगत दिशा सालियन के पिता श्री सतीश सालियन की ओर से बॉम्बे हाईकोर्ट में एक रिट याचिका में भी प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
मानहानि के इस मुकदमे में एडवोकेट सरकार ने आरोप लगाया है कि Live Law का ऑनलाइन मंच दुर्भावनापूर्ण और मानहानिक रिपोर्टिंग में सक्रिय रूप से लिप्त है, जिससे उनकी पेशेवर प्रतिष्ठा को गंभीर क्षति पहुंची है।
मुख्य मुकदमे के साथ-साथ, अदालत ने एक अंतरिम आवेदन पर भी नोटिस जारी किया है जिसमें Live Law, उसके संबंधित संपादक, और रिपोर्टर श्री नारसी बेनवाल की संपत्तियों की कुर्की की मांग की गई है। इस आवेदन में यह भी अनुरोध किया गया है कि जब तक ₹900 करोड़ की बैंक गारंटी प्रस्तुत नहीं की जाती, तब तक इन व्यक्तियों को हिरासत में रखा जाए।
मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि Live Law ने विशेष रूप से हाई-प्रोफाइल मामलों की रिपोर्टिंग में चयनात्मक और विकृत दृष्टिकोण अपनाया है। आरोप है कि इस मंच द्वारा प्रकाशित रिपोर्टों में मुख्य तथ्यों को नजरअंदाज किया गया, न्यायालय की टिप्पणियों को तोड़ा-मरोड़ा गया, और मामलों का सही दृष्टिकोण प्रस्तुत नहीं किया गया।
नागपुर सिविल कोर्ट में यह सिविल मुकदमा एक विशेष रिपोर्ट के आधार पर दायर किया गया, जो बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति माधव जामदार के समक्ष चल रही कार्यवाही से संबंधित है। एडवोकेट सरकार का कहना है कि Live Law ने न्यायालय के आदेश की सामग्री को इस प्रकार प्रस्तुत किया जिससे ऐसा प्रतीत हो कि उन्होंने एक फ्लैट लेनदेन में नकद राशि की पेशकश की थी, जबकि आदेश में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है।
वादी (Plaintiff) का तर्क है कि इस प्रकार की तथ्यहीन और भ्रामक रिपोर्टिंग से उनकी प्रतिष्ठा को गहरी क्षति पहुँची है, और यह रिपोर्ट बिना सत्यापन या उत्तर देने का अवसर दिए प्रकाशित की गई।
गौरतलब है कि यह मानहानि मुकदमा उस समय आया है जब Live Law के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में पहले से ही कई अवमानना याचिकाएं लंबित हैं, जो श्री सतीश सालियन, श्री मुरसलीन शेख और श्री राशिद खान पठान द्वारा दायर की गई हैं। इन याचिकाओं में भी भ्रामक रिपोर्टिंग, न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप, और विचाराधीन मामलों पर गलत जानकारी प्रकाशित करने को लेकर चिंता व्यक्त की गई है।
यह मानहानि मुकदमा और अंतरिम राहत याचिका का परिणाम भारत में कानूनी पत्रकारिता की दिशा और मीडिया की जिम्मेदारियों पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है, विशेष रूप से न्यायिक कार्यवाहियों की रिपोर्टिंग के संदर्भ में।