सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला भ्रष्ट, अहंकारी और आपराधिक प्रवृत्ति वाले बार काउंसिल सदस्यों पर करारा तमाचा. वकीलों के खिलाफ झूठे और दुर्भावनापूर्ण अनुशासनात्मक मामले दर्ज करने पर ₹1 लाख का जुर्माना लगाया

बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा के सदस्य एडवोकेट आशिष देशमुख, जिन्होंने कार्यकर्ता रशीद खान पठान के खिलाफ झूठे और भ्रामक प्रेस नोट पर हस्ताक्षर किए थे, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय ने कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने इसे गंभीर कदाचार मानते हुए उनके विरुद्ध कठोर टिप्पणियाँ दर्ज कीं और साथ ही बार काउंसिल को पीड़ित पक्ष को क्षतिपूर्ति स्वरूप ₹1 लाख का जुर्माना अदा करने का आदेश दिया।
अनुशासनात्मक कार्यवाही से बचने के लिए फर्जी ठराव और मिनट्स तैयार करने वाले एड. सुदीप पसबोला और उनके साथियों के खिलाफ एड. पार्थो सरकार ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS-2023) की धारा 379 के तहत आपराधिक याचिका दायर की है। इस याचिका में पसबोला और सचिव शरद बागुल सहित अन्य सह-अभियुक्तों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराएं 192, 193, 199, 200, 209, 218, 409, 466, 471, 474, 120(B), 34, 107 और 109 के तहत कठोर दंडात्मक कार्यवाही करने की मांग की गई है। इन गंभीर धाराओं में आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है, जिससे यह प्रकरण केवल अनुशासनात्मक कार्रवाई तक सीमित न रहकर एक गंभीर आपराधिक मामला बन गया है।
झूठे अनुशासनात्मक मामले और ब्लैकमेलिंग का खुलासा
जांच में यह सामने आया कि भ्रष्ट सदस्य प्रामाणिक और होनहार वकीलों पर झूठे अनुशासनात्मक मामले थोपते थे।
- इनसे वकीलों को मानसिक और आर्थिक रूप से परेशान किया जाता।
- पीड़ित वकीलों से पैसे ऐंठे जाते।
- दूसरी ओर, असली मामलों में शामिल भ्रष्ट और आपराधिक वकीलों को बचाया जाता।
इसके साथ ही, इन सदस्यों ने बैकडेटेड आदेश, फर्जी ठराव और ग़लत मिनट्स ऑफ़ मीटिंग्स तैयार कर पूरे तंत्र को अपने नियंत्रण में ले रखा था। इस गोरखधंधे ने वकीली पेशे की साख पर ही प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया।
पसबोला–बागुल फर्जीवाड़ा
अनुशासनात्मक मामले से बचने के लिए एड. सुदीप पसबोला ने, बार काउंसिल के तत्कालीन सचिव शरद बागुल और अन्य साथियों के साथ मिलकर, फर्जी दस्तावेज़ गढ़े।
- इनमें फर्जी ठराव और मिनट्स तैयार कर,
- उन्हें हलफ़नामे के साथ समिति के समक्ष पेश किया गया।
लेकिन जब कर्तव्यनिष्ठ सदस्यों ने असली रिकॉर्ड और डिजिटल सबूत सामने लाए तो यह षड्यंत्र ध्वस्त हो गया।
इन्हीं पुख़्ता सबूतों पर आधारित होकर एड. पार्थो सरकार ने BNSS-2023 की धारा 379 के तहत आपराधिक याचिका दायर की है।
इसमें पसबोला और बागुल सहित सह-अभियुक्तों पर IPC की धाराएं 192, 193, 199, 200, 209, 218, 409, 466, 471, 474, 120(B), 34, 107 और 109 लगाने की मांग की गई है। इन धाराओं में आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है।
दोषी सदस्य ही देंगे कीमत : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया आदेशों में स्पष्ट किया है कि जुर्माने की रकम संस्था से नहीं बल्कि दोषी सदस्य से ही वसूली जाएगी।
- Directions in the Matter of Demolition of Structures, In re (2025) 5 SCC 1 में यह सिद्धांत दोहराया गया कि जुर्माना गुनहगार पदाधिकारी से वसूला जाना चाहिए।
- इसलिए, बार काउंसिल का फंड जो वकीलों और जनता की अमानत है, उस पर किसी भ्रष्ट सदस्य की गलती का बोझ नहीं डाला जा सकता।
इससे यह भी सुनिश्चित हुआ कि यदि कोई सदस्य ईमानदार वकीलों को झूठे मामलों में फंसाकर परेशान करेगा, तो नुकसानभरपाई उसी सदस्य से वसूली जाएगी।
भविष्य के लिए सबक
यह निर्णय किसी एक मामले तक सीमित नहीं है। यह पूरे देश की सभी बार काउंसिलों के लिए नज़ीर और सबक है।
अब से:
1. ईमानदार वकीलों को अन्याय के खिलाफ लड़ने का आत्मविश्वास मिलेगा।
2. दोषी सदस्यों को अपनी गलतियों का सीधा आर्थिक और कानूनी बोझ उठाना होगा।
3. भविष्य में मनमानी और भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम होगी।
इसलिए इस फैसले को न्याय और जवाबदेही दोनों की जीत माना जा रहा है।
उलटी गिनती शुरू
सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाईकोर्ट पहले ही कई मामलों में ऐसे सदस्यों को फटकार लगा चुके हैं।
- An Advocate v. Bar Council of Maharashtra & Goa (2025 SCC OnLine Bom 163) में बैकडेटेड आदेश जारी करने पर कोर्ट ने महिला वकील के पक्ष में निर्णय दिया।
- Adv. Rajeev Narula केस [2025 INSC 1147] में सुप्रीम कोर्ट ने एड. आशिष देशमुख को अवैध आदेश देने पर फटकार लगाई और ₹1 लाख मुआवज़ा पीड़ित वकील को देने का आदेश दिया।
अब स्थिति यह है कि कुछ आरोपी सदस्य जेल की हवा खाने वाले हैं और उनकी सनद रद्द होने का रास्ता भी साफ हो चुका है।
भ्रष्ट बार काउंसिल सदस्यों की उलटी गिनती शुरू, सफाई अभियान ने पकड़ी रफ़्तार
महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई अब निर्णायक मोड़ पर पहुँच रही है। वकीलों और एक्टिविस्टों का एक सशक्त समूह — एड. पार्थो सरकार, रशीद खान पठान, एड. विजय कुर्ले, एड. विवेक रामटेके, एड. निलेश ओझा, एड. ईश्वरलाल अग्रवाल और एड. तनवीर निज़ाम — ने खुले तौर पर काउंसिल के भीतर की भ्रष्ट लॉबी को चुनौती दी है।
जो लड़ाई कुछ व्यक्तियों से शुरू हुई थी, वह अब एक जनआंदोलन का रूप ले चुकी है। इसे युवा और होनहार वकीलों, जागरूक नागरिकों, कर्तव्यनिष्ठ बार काउंसिल सदस्यों और न्यायपालिका के ईमानदार तत्वों का मज़बूत समर्थन मिल रहा है। यह संघर्ष अब न्याय व्यवस्था की सफाई और शुद्धिकरण के लिए एक न्यायिक क्रांति की शुरुआत माना जा रहा है।
जांच में सामने आया है कि बरसों से बार काउंसिल के भीतर सक्रिय एक रैकेट ने ईमानदार वकीलों को निशाना बनाया — उन्हें झूठे अनुशासनात्मक मामलों में फँसाया गया, लगातार परेशान किया गया और पैसे ऐंठे गए। वहीं, भ्रष्ट और आपराधिक प्रवृत्ति वाले वकीलों को सुरक्षा दी गई और उनके मामलों को दबा दिया गया।
लेकिन अब कर्तव्यनिष्ठ सदस्यों ने आगे आकर इन कुकृत्यों का पर्दाफाश किया है। नतीजतन, भ्रष्ट बार काउंसिल सदस्यों की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। पुख्ता सूत्रों के अनुसार, कुछ आरोपी सदस्य जल्द ही जेल की हवा खा सकते हैं। यह घटनाक्रम कानूनी पेशे में ईमानदारी और जवाबदेही की लड़ाई का ऐतिहासिक मोड़ साबित हो सकता है।
निचोड़: वर्षों से “हम करें सो कायदा” की मानसिकता से मनमानी कर रहे भ्रष्ट बार काउंसिल सदस्यों के दिन लद चुके हैं। अब उन्हें अपनी गलतियों की कीमत अपने पैसों, अपनी सनद और अपनी आज़ादी से चुकानी होगी।
संदेश साफ है: अब वो दिन लद गए जब भ्रष्ट और अहंकारी बार काउंसिल सदस्य संस्था को अपनी जागीर समझकर मनमानी करते थे। कानून ऐसे लोगों को बिल्कुल नहीं बख्शेगा।
“हम करें सो कायदा” मानसिकता पर न्यायिक चोट
महाराष्ट्र और गोवा बार काउंसिल के भीतर वर्षों से पनप रहे भ्रष्टाचार और मनमानी पर अब सुप्रीम कोर्ट की सख़्त नज़र पड़ चुकी है। लंबे समय से कुछ सदस्य, जिन्हें अपने अधिकार का अहंकार था, सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए “हम करें सो कायदा” की मानसिकता से कार्य कर रहे थे। परंतु अब इनका असली चेहरा उजागर हो गया है और न्यायपालिका ने करारा झटका दिया है।
कई सालों से कुछ अहंकारी और आपराधिक प्रवृत्ति वाले बार काउंसिल सदस्य सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अनदेखी कर “हम करें सो कायदा” के अंदाज़ में काम कर रहे थे।
ये सदस्य ईमानदार वकीलों पर झूठे अनुशासनात्मक मामले थोपते, असली मामलों को दबाते, बैकडेट आदेश जारी करते, फर्जी ठराव बनाते और अनुशासनात्मक तंत्र का इस्तेमाल खंडणी वसूली के लिए करते। अब ये सभी गोरखधंधे सामने आ गए हैं।