दिशा सालियन मौत मामला: कोर्ट में फर्जी साक्ष्य पेश कर न्याय का मज़ाक उड़ाने वालों पर अदालत का कोड़ा!

7 अगस्त को बॉम्बे हाईकोर्ट में आदित्य ठाकरे, वरिष्ठ अधिवक्ता सुदीप पासबोला, पुलिस निरीक्षक शैलेंद्र नगरकर और एपीपी गावंड के खिलाफ न्यायिक धोखाधड़ी व अवमानना याचिका पर सुनवाई
कल्याण कोर्ट के निर्देश पर पहले ही पुलिस निरीक्षक शैलेंद्र नगरकर और पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह के खिलाफ दर्ज हो चुकी है CBI FIR.
16 जुलाई 2025 को न्यायमूर्ति रविंद्र घुगे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि साइबर सेल के पीआई प्रफुल्ल वाघ ने एपीपी गावंड के माध्यम से एक फर्जी व्यक्ति को कोर्ट में पेश किया। यह गंभीर न्यायिक धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है। अदालत ने इसे भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 227 और 229 (पूर्ववर्ती IPC की धारा 191 और 193) के तहत दंडनीय अपराध माना है।
मुंबई | 24 जुलाई 2025
दिशा सालियन की रहस्यमय मौत के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट में दर्ज फौजदारी याचिका और अंतरिम आवेदनों पर आगामी 7 अगस्त को अहम सुनवाई होगी। यह याचिका दिशा के पिता श्री सतीश सालियन ने दायर की है, जिसमें शिवसेना (उबठा) नेता आदित्य ठाकरे, वरिष्ठ वकील सुदीप पासबोला, पीआई शैलेंद्र नगरकर और सहायक सरकारी वकील एस. वी. गावंड के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और आपराधिक कार्यवाही की मांग की गई है।
कल्याण कोर्ट के निर्देश पर पहले ही दर्ज हो चुकी है CBI FIR
इस पूरे मामले की पृष्ठभूमि में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि कल्याण सत्र न्यायालय के स्पष्ट निर्देश के बाद सीबीआई ने पुलिस निरीक्षक शैलेंद्र नगरकर और पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है। आरोप है कि इन अधिकारियों ने एसीपी भीमराव घाडगे (जो अनुसूचित जाति से हैं और एक अहम सरकारी गवाह हैं) को झूठे मुकदमे में फंसाने के लिए फर्जी और मनगढ़ंत साक्ष्य तैयार किए।
न्यायालयीय आदेश में स्पष्ट किया गया है कि एसीपी घाडगे ने वरिष्ठ अधिकारियों के भ्रष्टाचार और आपराधिक मिलीभगत के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए थे, इसलिए उन्हें टारगेट करना एक पूर्व नियोजित साजिश का हिस्सा था। गंभीर सवाल उठते हैं।
फर्जी गवाह और साक्ष्य पेश करने पर हाईकोर्ट का सख्त रुख
16 जुलाई 2025 को न्यायमूर्ति रविंद्र घुगे की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि साइबर सेल के पीआई प्रफुल्ल वाघ ने एपीपी गावंड के माध्यम से एक फर्जी व्यक्ति को कोर्ट में पेश किया। यह गंभीर न्यायिक धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है। अदालत ने इसे भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 227 और 229 (पूर्ववर्ती IPC की धारा 191 और 193) के तहत दंडनीय अपराध माना है।
अदालत ने कहा कि झूठे गवाह प्रस्तुत करना और कोर्ट को गुमराह करना न सिर्फ कानून का उल्लंघन है, बल्कि न्यायिक प्रणाली पर सीधा हमला है। ऐसे मामलों में उदाहरण स्थापित करने वाली सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है।
यह आदेश दिशा सालियन की रहस्यमय और संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मृत्यु से संबंधित याचिका में अत्यंत निर्णायक भूमिका निभा सकता है, विशेषकर पुलिस निरीक्षक शैलेंद्र नगरकर और सहायक सरकारी वकील एस. वी. गावंड के विरुद्ध की गई आपराधिक कार्यवाही की मांग के संदर्भ में। याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों के अनुसार, इन दोनों अधिकारियों ने न केवल मामले से संबंधित महत्वपूर्ण और आपत्तिजनक साक्ष्य जानबूझकर छिपाए, बल्कि न्यायालय की आंखों में धूल झोंकने के इरादे से झूठे गवाह भी खड़े किए। यह आरोप बेहद गंभीर हैं क्योंकि इससे न केवल सच्चाई को दबाने का प्रयास हुआ, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को भी आघात पहुंचा।
अब, जब बॉम्बे हाईकोर्ट ने अपने स्पष्ट आदेश में यह स्वीकार किया है कि मुंबई पुलिस के एक अन्य अधिकारी—पीआई प्रफुल्ल वाघ—ने एपीपी गावंड की सहायता से एक फर्जी गवाह कोर्ट में प्रस्तुत किया था, और इसे भारतीय न्याय संहिता के तहत दंडनीय अपराध माना है, तो यह पूरे मामले की गंभीरता और गहराई को और पुष्ट करता है। इससे यह भी स्पष्ट संकेत मिलता है कि इस तरह की न्यायालयीन धोखाधड़ी सिर्फ एक अलग-थलग घटना नहीं थी, बल्कि एक संगठित पैटर्न के तहत न्यायालय को गुमराह करने की साजिश का हिस्सा हो सकती है।
इस पृष्ठभूमि में, दिशा सालियन केस में लंबित याचिका के संदर्भ में उक्त आदेश को प्रत्यक्ष और ठोस न्यायिक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है, जिससे पीआई शैलेंद्र नगरकर और एपीपी गावंड की भूमिका पर और भी गंभीर सवाल उठते हैं।
कोर्ट की सख्त नाराज़गी: मुख्य सचिव का हलफनामा अब तक गायब
2 जुलाई 2025 की सुनवाई में कोर्ट ने पहले दिए गए आदेश (दिनांक 29 अप्रैल 2025) के अनुपालन न होने पर नाराज़गी जताई। मुख्य सचिव का जवाबी हलफनामा अब तक न आने पर अदालत ने एपीपी से स्पष्टीकरण मांगा। एपीपी गावंड ने कोर्ट में आश्वासन दिया कि सभी दस्तावेजों की समीक्षा कर वरिष्ठों से सलाह लेकर विस्तृत उत्तर प्रस्तुत करेंगे।
7 अगस्त की सुनवाई होगी निर्णायक
इस पूरे मामले की संवेदनशीलता, राजनीतिक जुड़ाव, और सार्वजनिक हित को देखते हुए 7 अगस्त 2025 को होने वाली सुनवाई अत्यंत महत्वपूर्ण और संभावित रूप से ऐतिहासिक मानी जा रही है। कानूनी जानकारों के अनुसार, इस सुनवाई में एफआईआर दर्ज करने के आदेश, आरोपियों की कस्टोडियल पूछताछ, या न्यायालय की निगरानी में जांच की मंजूरी मिल सकती है, जिससे दिशा सालियन और सुशांत सिंह राजपूत की मौत से जुड़े मामलों पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।