एडवोकेट निलेश ओझा ने पाँच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष याचिका दायर की – न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे को पक्षकार प्रतिवादी बनाने और उनके खिलाफ नोटिस जारी कर शपथपत्र दाखिल करने की मांग; ₹10 करोड़ अंतरिम क्षतिपूर्ति की भी मांग

“इंडियन बार एसोसिएशन” के राष्ट्रीय अध्यक्ष एडवोकेट निलेश ओझा ने बॉम्बे हाईकोर्ट की पाँच न्यायाधीशों वाली पीठ के समक्ष एक आवेदन दायर कर न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे को वर्तमान अवमानना कार्यवाही में आवश्यक पक्षकार-प्रतिवादी बनाने तथा उन्हें नोटिस जारी कर शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश देने की मांग की है।
ओझा का कहना है कि इस कार्यवाही में संज्ञान केवल न्यायमूर्ति मोहिते डेरे द्वारा 04.04.2025 को की गई निजी शिकायत के आधार पर लिया गया है। इसलिए सुंदीप कुमार बाफना बनाम राज्य महाराष्ट्र (2014) 16 SCC 623 तथा अन्य सुप्रीम कोर्ट के बंधनकारी निर्णयों के अनुसार, किसी भी डिस्चार्ज आवेदन—जिसका परिणाम अभियोजन को समाप्त करना हो—को तब तक निर्णय नहीं किया जा सकता जब तक कि वास्तविक शिकायतकर्ता को पक्षकार न बनाया जाए और सुना न जाए।
गंभीर आरोप
एडवोकेट ओझा ने अपने हलफनामे में न्यायमूर्ति मोहिते डेरे पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिनमें शामिल हैं:
- अदालत के साथ धोखाधड़ी और न्यायालय के अभिलेखों की जालसाजी,
- मल्टी-करोड़ घोटालों में अभियुक्तों को राहत देने में भ्रष्टाचार,
- एडवोकेट ओझा को झूठे तौर पर फँसाने हेतु झूठी और निराधार शिकायत दर्ज करना,
- पक्षपात और दुर्भावना दिखाकर स्वयं को संभावित अभियोजन से बचाना।
सुप्रीम कोर्ट के उदाहरण
ओझा ने एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (AIR 1982 SC 149), रे: जस्टिस सी.एस. कर्णन (2017) 7 SCC 1, सी.एस. रौजी बनाम एपीएसआरटीसी (AIR 1964 SC 962) तथा एक्सप्रेस न्यूज़पेपर्स बनाम भारत संघ (1986) 1 SCC 133) जैसे निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि न्यायाधीश पर लगे आरोपों का व्यक्तिगत और स्पष्ट खंडन उसी न्यायाधीश द्वारा शपथपत्र पर किया जाना अनिवार्य है। किसी तीसरे पक्ष, यहाँ तक कि राज्य के विधि अधिकारियों द्वारा दायर किया गया हलफनामा भी श्रुतलेख साक्ष्य (hearsay evidence) माना जाएगा और विधि में अस्वीकार्य है। यदि न्यायमूर्ति मोहिते डेरे द्वारा शपथपत्र पर इन आरोपों का स्पष्ट खंडन नहीं किया जाता, तो उन्हें यह आरोप स्वीकार हैं, ऐसा माना जाएगा। और उसके आधार पर न्यायमूर्ति मोहिते डेरे के ख़िलाफ़ विधिसम्मत कार्यवाही भी की जाएगी।
अंतरिम क्षतिपूर्ति की मांग (Interim Compensation)
एडवोकेट ओझा ने न्यायमूर्ति मोहिते डेरे से उनके द्वारा की गई झूठी शिकायत और दुर्भावनापूर्ण अभियोजन के लिए ₹10 करोड़ अंतरिम क्षतिपूर्ति की भी मांग की है, जिससे उनकी प्रतिष्ठा, गरिमा और पेशेवर छवि को अपूरणीय क्षति पहुँची है।
झूठा शपथपत्र देने पर न्यायाधीश को हो सकती है 7 साल जेल – एक गंभीर अपराध
भारतीय क़ानून व्यवस्था में झूठा शपथपत्र दायर करना एक गंभीर आपराधिक अपराध है।
सुप्रीम कोर्ट ने कई बार स्पष्ट किया है कि शपथपत्र विधि की दृष्टि से साक्ष्य (Evidence) है और उसमें किया गया झूठा बयान दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है।
ऐसे में यदि कोई न्यायाधीश झूठा शपथपत्र दाखिल करता है, तो उस पर भारतीय दंड संहिता (धारा 191, 192, 193, 199, 200) अथवा भारतीय दंड संहिता (नवीन) की समतुल्य धाराओं के तहत अभियोजन चलाया जा सकता है।
इन धाराओं में सात वर्ष तक का कठोर कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।
प्रमुख उदाहरण
- एस.पी. गुप्ता और रे: जस्टिस कर्णन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने यहाँ तक कि भारत के मुख्य न्यायाधीश से भी शपथपत्र मंगवाया और उसे साधारण पक्षकार की तरह माना।
- In Re: विनय चंद्र मिश्रा (1995) 2 SCC 584 तथा पी.के. घोष बनाम जे.जी. राजपूत (1995) 6 SCC 744 के मामलों में, संबंधित न्यायाधीशों से उनका स्पष्टीकरण (explanation) माँगा गया था।
ये सभी उदाहरण सिद्ध करते हैं कि जब अवमानना कार्यवाही सीधे किसी न्यायाधीश से जुड़ी हो, तो उस न्यायाधीश को शिकायतकर्ता अथवा गवाह की तरह माना जा सकता है और उससे शपथपत्र या स्पष्टीकरण माँगा जा सकता है।