दिशा सालियन सामूहिक बलात्कार और हत्या प्रकरण में आदित्य ठाकरे का झूठा हलफनामा: खुद को बचाने की हताश और असफल कोशिश

दिनांक: 25 जून 2025 | स्थान: मुंबई
दिशा सालियन की गैंगरेप और हत्या मामले में एक चौंकाने वाला घटनाक्रम सामने आया है। पूर्व मंत्री श्री आदित्य ठाकरे ने 14.06.2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट में एक हलफनामा (Affidavit) दाखिल किया है, जो कि न केवल पूर्णतः झूठा, भ्रामक और तथ्यों से परे है, बल्कि यह भारत के विधि तंत्र और न्यायपालिका के साथ धोखाधड़ी करने का गंभीर प्रयास भी है।
यह हलफनामा IA No. 12708/2025, दायर रिट याचिका क्रिमिनल रिट पेटिशन संख्या 1612/2025 में दाखिल किया गया है। इस याचिका में दिशा सालियन की हत्या की FIR दर्ज कर CBI जांच की मांग की गई है।
हलफनामे की असत्य बातें और स्पष्ट झूठ:
🔹 क्लीन चिट का झूठा दावा:
आदित्य ठाकरे ने अपने हलफनामे में यह दावा किया है कि उन्हें CBI और बिहार पुलिस ने ‘क्लीन चिट’ दे दी है। यह बयान स्पष्ट रूप से झूठा है, क्योंकि CBI ने आज तक दिशा सालियन केस में कोई भी क्लोजर रिपोर्ट या क्लीन चिट नहीं दी है। स्वयं CBI प्रवक्ता ने इस बात का खंडन किया है कि आदित्य ठाकरे या किसी अन्य आरोपी को कोई आधिकारिक छूट दी गई हो।
🔹 उम्र में धोखाधड़ी
दिनांक 11.10.2023 को दाखिल पिछले हलफनामे में आदित्य ठाकरे ने अपनी उम्र 33 वर्ष लिखी थी। अब, दो वर्ष बाद, वर्तमान हलफनामे में उनकी उम्र घटकर 28 वर्ष हो गई है। यह न केवल हास्यास्पद है, बल्कि यह दर्शाता है कि आरोपी ने अदालत के समक्ष जाली और मनगढ़ंत दस्तावेज प्रस्तुत किए हैं, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 191, 193, 199, 200, 209 आदि के तहत दंडनीय अपराध है।
इतने गंभीर आरोपों के बावजूद आदित्य ठाकरे ने अपने हलफनामे में किसी भी मुख्य आरोप पर कोई जवाब नहीं दिया, जैसे कि:
हालांकि, कई मौकों पर आदित्य ठाकरे ने मीडिया के तीखे और बार-बार पूछे गए सवालों से बचते हुए यह बयान दिया था कि “मैं अपना जवाब अदालत में दूंगा”, परंतु विडंबना यह है कि उन्होंने दिनांक 14.06.2025 को जो हलफनामा बॉम्बे हाईकोर्ट में दाखिल किया है, उसमें उन्होंने एक भी ऐसे गंभीर और मूलभूत आरोप का उत्तर नहीं दिया, जिनका जवाब न्याय और पारदर्शिता की दृष्टि से अनिवार्य था।
🔴 निम्नलिखित बिंदुओं पर उन्होंने जानबूझकर चुप्पी साधी और कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया:
1. 📌 क्या वे दिशा सालियन को व्यक्तिगत रूप से जानते थे या उनका उनसे कोई संपर्क था?
2. 📍 8 जून 2020 की रात को उनकी सटीक उपस्थिति, गतिविधियाँ और स्थान क्या था? क्या उन्होंने उसका कोई वैध प्रमाण जैसे मोबाइल लोकेशन, टॉवर डेटा या CCTV फुटेज प्रस्तुत किया?
3. ⚰️ क्या उन्होंने यह झूठा दावा नहीं किया था कि 8 जून को उनके दादा का अंतिम संस्कार था — जबकि वास्तविकता यह है कि उनके दादा का निधन 14 जून को हुआ था?
4. 🤝 क्या उन्होंने यह असत्य बयान नहीं दिया कि उनका रिया चक्रवर्ती से कोई संबंध नहीं है, जबकि उनके सोशल मीडिया पोस्ट, फोटो और डिजिटल रिकॉर्ड इसके विपरीत तथ्य प्रस्तुत करते हैं?
5. 💊 क्या उन्होंने कभी स्पष्ट रूप से इनकार किया है कि वे किसी ड्रग्स नेटवर्क में शामिल नहीं हैं और स्वयं ड्रग्स का सेवन नहीं करते? यदि नहीं, तो इसका क्या कारण है?
6. 📞 उन्होंने अब तक क्यों नहीं अपने कॉल डिटेल रिकॉर्ड, टॉवर लोकेशन डेटा और CCTV फुटेज अदालत को सौंपे, ताकि उनके निर्दोष होने का दावा परखा जा सके?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने अनेक निर्णयों में कहा है कि यदि कोई आरोपी सीधे आरोपों का जवाब नहीं देता या टालमटोल करता है, तो यह न्यायिक दृष्टि से आरोप की मौन स्वीकारोक्ति मानी जाती है।
🔁 पूर्व हलफनामे से यू-टर्न
11.10.2023 के अपने पहले हलफनामे में आदित्य ठाकरे ने आरोप लगाया था कि उनका नाम जानबूझकर BJP नेताओं श्री नारायण राणे और नितेश राणे के इशारे पर घसीटा गया। लेकिन अब अपने नए हलफनामे में उन्होंने न केवल यह आरोप वापस लिया है, बल्कि राज्य SIT की निष्पक्ष जांच की सराहना भी की है।
यह 180 डिग्री का उलटफेर दर्शाता है कि उनके पहले के आरोप राजनीतिक और झूठे थे।
📚 कानूनी निष्कर्ष:
🔸 मुख्य अभियुक्त होते हुए आदित्य ठाकरे का हस्तक्षेप आवेदन न्यायिक रूप से अस्वीकृत होना चाहिए।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने ठीक इसी तरह Abhishek Banerjee v. Soumen Nandy, 2023 SCC OnLine Cal 1191 में हस्तक्षेप याचिका खारिज करते हुए ₹50 लाख का जुर्माना लगाया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने सत्यापित किया।
🔸 झूठे हलफनामे और कोर्ट को गुमराह करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 191, 193, 199, 200, और 209 के अंतर्गत 7 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है।
इसके अलावा, वकील जो ऐसा हलफनामा दाखिल करें, Bar Council Act के अंतर्गत अनुशासनात्मक कार्रवाई व उनका लाइसेंस रद्द किया जा सकता है। (संदर्भ: Silloo Mistry v. State of Maharashtra, 2017 SCC OnLine Bom 2392, Ashok Motilal Saraogi v. State of Maharashtra, 2016 ALL MR (Cri) 3400)
न्यायालय से मांग की गई है कि आदित्य ठाकरे के खिलाफ झूठा हलफनामा, गुमराह करने की मंशा, और न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप के लिए तुरंत अवमानना व परमार्जन कार्यवाही शुरू की जाए, तथा उनकी गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाए।