क़ानूनी प्रावधान और संविधान के खिलाफ काम करने पर चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया डी.वाय.चंद्रचूड के खिलाफ याचिका दायर।
साथमे जस्टिस जे.बी.पारडीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी आरोपी।
राष्ट्रीय मानव आधिकार आयोग में जनहित याचिका दायर। [PIL Diary No. 3046/IN 2024]
सुप्रीम कोर्ट एंड हाई कोर्ट लिटीगेंट एसोसिएशन ने दायर की याचिका।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा ख़ारिज किये गए Sharad Pawar Vs. Jagmohan Dalmiya (2010) 15 SCC 290, मामले के गैरकानूनी नियमो के आधारपर आदेश पारित करने की वजह से चीफ जस्टिस मुश्किल में।
इंडियन बार एसोसिएशन के राष्ट्रिय अध्यक्ष ॲड. निलेश ओझा, सुप्रीम कोर्ट लॉयर्स एसोसिएशन के ॲड. इश्वरलाल अगरवाल, ॲड. तनवीर निझाम और अन्य कई सैकड़ो वकील करेंगे पैरवी।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में बताया की तीनों जजेस ने संविधान पीठ के आदेशो की अवमानना की है। इसलिए तीनों जजेस कोर्ट अवमानना कानून 1971 की धारा 2(b), 12, 16 के साथ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 129, 142 के तहत सजा के हकदार है।
CJI चन्द्रचूड़ पर लगा भेदभाव और double standard अपनाने का आरोप।
पहले भी श्री रशीद खान पठान और एड. निलेश ओझा की याचिका पर मानव अधिकार आयोग ने श्रीमती कनिमोझी और अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ की याचिका में हस्तक्षेप किया था और फिर Sanjay Chandra v. CBI, (2012) 1 SCC 40, का कानून बना था जिसकी वजह से लाखों लोगों को जमानत मिली थी और वह कानून आज भी लाखों आम जनता को फायदा पहुंचा रहा है।
नई दिल्ली: – चंदीगड मेयर चुनाव मामले के पीठासीन आधिकारी अनिल मसीह को Cr.P.C. ३४० की कारण बताओ नोटिस देना सी.जे. आई. चंद्रचूड को भारी पड़ गया है। क्युकी क़ानूनी प्रावधानों के हिसाब से Cr.P.C. ३४० की कार्वाही के दौरान आरोपी को नोटिस देने का प्रावधान नहीं है और इस संबंध में शरद पवार मामले में बनाए गए नियम Sharad Pawar Vs. Jagmohan Dalmiya (2010) 15 SCC 290, को सर्वोच्च न्यायालय की वरिष्ठ बेंच ने State of Punjab v. Jasbir Singh, 2022 SCC OnLine SC 1240, मामले पहेले ही ख़ारिज कर दिया है।
लेकिन फिर भी सी.जे.आई. चंद्रचूड ने क़ानून की अनदेखी कर श्री. अनिल मसीह को गैरकानूनी तरीके से नोटिस देकर श्री. मसीह के भारतीय संविधान के अनुच्छेद १४, २०(३), २१, के तहत दिए गए मूलभूत आधिकारो का हनन कीया है। इसीलिए सी.जे.आई. चंद्रचूड समेत तीनो जजेस के खिलाफ राष्ट्रिय मानव आधिकार आयोग में याचिका दायर की गई है।
सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ और संविधान पीठ ने अनेक मामलो में स्पष्ट कानून बनाया है की किसी मामले में अगर कोर्ट को झूठी गवाही देने वाले के खिलाफ केस करना है तो Cr.P.C. की धारा ३४० के अंतर्गत किसी भी कारवाई के दौरान प्रस्तावित आरोपी का ह्स्तक्षेप नहीं होना चाहिए और अगर आरोपी खुद आकर भी कोर्ट में जवाब दाखिल करता है तो भी कोर्ट उस जवाब को नहीं ले सकता है। [State of Punjab v. Jasbir Singh, 2022 SCC OnLine SC 1240, Al Amin Garments Haat (P) Ltd. v. Jitendra Jain, 2024 SCC OnLine Cal 110, Devinder Mohan Zakhmi Vs Amritsar Improvement Trust And Anr 2002 Cri.L.J. 4485]
इसके अलावा भारतीय संविधान के अनुच्छेद २०(३) में सपष्ट प्रावधान है की क्रिमिनल केस में आरोपी को खुद के खिलाफ के मामले में जवाब देने की नोटिस नहीं दी जा सकती।
लेकिन सी.जे.आई. चंद्रचूड की बेंच में अपने २०.०२.२०२४. के आदेश में अनिल मसीह को ३४० का नोटिस जारी कर उनसे जवाब माँगा है की क्यों उनके खिलाफ कारवाई न की जाए।
इस आदेश की वजह से श्री. अनिल मसीह के भारतीय संविधान द्वारा दिए गए उन आधिकारो का हनन हो गया है जिसके तहत आरोपी को केस के अंत तक चुप रहने का आधिकार है।
सी.जे.आई. चंद्रचूड की गैरकानूनी नोटिस का एक और नुक्सान यह है की अगर श्री. अनिल मसीह का जवाब सुप्रीम कोर्ट ने मानने से मना कर दिया तो उनके खिलाफ जब निचली अदालत में मामला चलेगा तब निचली अदालत सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ नहीं जा सकती और फिर श्री. अनिल मसीह के उन्हें केस में दोषी ठहराए जाने तक निर्दोष समझना के संवैधानिक आधिकारो का हनन होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने खुद कानून बनाया है की अगर सुप्रीम कोर्ट के द्वारा किसी भी नागरिक के मूलभूत आधिकारो का हनन होता है तो उस हनन की जाँच राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा कर सकता है।[Ram Deo Chauhan v. Bani Kanta Das, (2010) 14 SCC 209]
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाये गए कानून में यह भी स्पष्ट किया है है की अगर किसी भी जज के गैरकानूनी आदेशो की वजह से अगर किसी भी व्यक्ति के मुलभुत आधिकारो का हनन होता है तो सरकार द्वारा उस पीड़ित व्यक्ति को मुआवजा (हर्जाना) compensation दिया जाना चाहिए।
[Walmik Bobde vs State of Maharashtra 2001 ALL MR (Cri.)1731, Ramesh Maharaj Vs. The Attorney General (1978) 2 WLR 902, Bharat Devdan Salvi Vs. State of Maharashtra, 2016 SCC OnLine Bom 42, Sailajanand Pande v. Suresh Chandra Gupta, 1968 SCC OnLine Pat 49]
सुप्रीम कोर्ट की संबिधान पीठ ने स्पष्ट किया है की सुप्रीम कोर्ट के जजेस और चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया भी लोक सेवक (PUBLIC SERVRNT ) है और वे जनता को जबाबदेह है। [Supreme Court of India V. Subhash Chandra Agarwal (2020) 5 SCC 481]
इसलिए लोकसेवको के सारे कानून जिसमें यह कहा गया है की नागरीको के आधिकारो का हनन करने वाले अधिकारीयो से जुर्माना वसूला जाए वे सब नियम सुप्रीम कोर्ट के जजेस को भी लागू होते है। [S. Nambi Narayan vs. Siby Mathews (2018) 10 SCC 840, D.K. Basu vs. State of W.B. (1997) 1 SCC 416, Veena Sippy V/S Mr. Narayan Dumbre 2012 SCC OnLine Bom 339]
मानव अधिकार संरक्षण कानून, 1993 की धारा 18 (3 ) के तहत राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग को यह अधिकार है की वो पीड़ितो को अंतरिम मुआवजा देने का आदेश दे सकता है।
CJI चन्द्रचूड़ पर लगा भेदभाव और double standard अपनाने का आरोप।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में कई उदाहरण देकर यह बताया है की CJI चन्द्रचूड़ ने बीजेपी समर्थन के आरोपीत अधिकारी श्री अनिल साह के खिलाप स्वतः (suo -moto) संज्ञान लिया। वकील वीरेंदर सिंग को जज के खिलाफ के आरोप में दोषी करार दिया।
लेकिन ऐसे ही मामले में झूठा शपथपत्र देने वाले ममता बैनर्जी के भांजे अभिषेक बैनर्जी और एड. अभिषेक मनु सिंघवी का झूठ उजागर होने के बाद भी और उनके खिलाफ लिखित शिकायत देने के बाद भी कोई करवाई नहीं की गई
CJI चन्द्रचूड़ ने मणीपुर हिंसा में बीजेपी सरकार के खिलाफ तुरंत संज्ञान (SUO – MOTO ACTION) लिया लेकिन महिलाओ के खिलाफ उससे भी ज्यादा भयानक और गंभीर अपराधों के पश्चिम बंगाल के ‘संदेशखाली’ और अन्य मामलो में दायर याचिकाओं पर भी कोई करवाई नहीं हुई।
दिशा सालियान के सामूहिक अत्याचार और हत्या तथा सुशांत सिंग राजपूत की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोई संज्ञान नहीं लिया क्योंकी इसमें मुख्य आरोपी आदित्य ठाकरे ये भाजप विरोधी है. बल्कि इसके विपरीत CJI चंद्रचूड के बेटे ॲड. अभिनव चंद्रचूड उस केस की आरोपी और आदित्य ठाकरे की दोस्त रिया चक्रवर्ती के वकील बन गए।
ऐसे अनेक उदाहरणो से CJI चंद्रचूड की पक्षपाती मानसिकता, पूर्वाग्रह, दोगलापन (double standard) साफ दिखता है। इसलिए उनके खिलाफ CBI, IB, CVC और अन्य केंद्रीय एजंसीयों द्वारा जांच करवाकर कठोर कानूनी कारवाई का आदेश देने की मांग की गई है।
CJI चंद्रचूड और अन्य दो जजेस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में ही कोर्ट अवमानना की याचिका दायर करने के निर्देश Attorney General को देने की मांग की।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में बताया की तीनों जजेस ने संविधान पीठ के आदेशो की अवमानना की है। इसलिए तीनों जजेस कोर्ट अवमानना कानून 1971 की धारा 2(b), 12, 16 के साथ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 129, 142 के तहत सजा के हकदार है।
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन मामले में स्पष्ट कानून बनाया है की दोषी जजेस के खिलाफ कोर्ट अवमानना की कार्रवाई के लिए कोई भी नागरिक याचिका दायर कर सकता है और उस याचिका को सुनने के लिए सुप्रीम कोर्ट बाध्य है। [Re: C.S. Karnan (2017) 7 SCC 11]
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने इसके पहले भी कोर्ट अवमानना के तहत कई जजेस पर कारवाई की है। [Re M.P. Dwivedi, (1996) 4 SCC 152, Baradakanta Misra v. Bhimsen Dixit, (1973) 1 SCC 446, Smt. Prabha Sharma V. Sunil Goyal (2017) 11 SCC 77, Superintendent of Central Excise Vs. Somabhai Ranchhodhbhai Patel AIR 2001 SC 1975]
पहले भी श्री रशीद खान पठान और एड. निलेश ओझा की याचिका पर मानव अधिकार आयोग ने श्रीमती कनिमोझी और अन्य के मामले में हस्तक्षेप किया था और फिर Sanjay Chandra v. CBI, (2012) 1 SCC 40, का कानून बना था जिसकी वजह से लाखों लोगों को जमानत मिली थी और वह कानून आज भी लाखों आम जनता को फायदा पहुंचा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा जमानत देते वक्त अपराध सिद्धी से पहले आरोपियों को दोषी न मानने वाले कानून का ठीक से पालन ना करने तथा आरोपीयो के मूलभूत संवैधानिक अधिकारो के हनन के मामले मे ‘राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग‘ में सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ दि. 25.09.2011 को याचिका दायर कर डीएमके नेता श्रीमती कनीमोझी, काँग्रेसी नेता सुरेश कलमाडी, भाजपा नेता जनार्दन रेड्डी, बिल्डर शाहीद बलवा, समाजवादी पार्टी के नेता अमर सिंह आदि लोगो को जमानत दिलवाने की माँग की। रशीद खान पठान की उसी याचिका के मुद्दो के आधारपर सुप्रीम कोर्ट का जमानत मिलने को आसान बनाने वाले कानून वाला आदेश 23 नवंबर 2011 को पारित हुआ। [Sanjay Chandra v. CBI, (2012) 1 SCC 40]
सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व चीफ जस्टिस तथा आयोग के अध्यक्ष श्री के. जी. बालकृष्णन ने रशीद खान पठाण की याचिका को दिनांक 31.10.2011 को अपने पत्न के साथ सुप्रीम कोर्ट को भेजा।
और सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश Sanjay Chandra v. CBI, (2012) 1 SCC 40, में रशीद खान पठान की याचिका के मुद्दों को लेकर ही जमानत का आसान कानून बनाया।
उस कानून के आधार पर उन सभी लोगो के साथ ही देशभर मे लाखों आम लोगों को अब तक जमानत मिल चुकी है और रोज मिल रही है।
दिल्ली में 2G स्पेक्ट्रम मामले में श्रीमती कनिमोझी, ए. राजा और अन्य लोगों की जमानत याचिका खारिज हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले मे जमानत देने से मना कर दिया था और सब आरोपी जेल में ही थे।
उसी दौरान समाजवादी पार्टी के सांसद अमर सिंह, बिल्डर शाहीद बलवा, कांग्रेस के नेता सुरेश कलमाडी, उद्योगपती जनार्दन रेड्डी समेत आम आदमी की भी जमानत खारीज करके उन्हें जेल भेजा जा रहा था।
तब मानव अधिकार सुरक्षा परिषद के महासचिव श्री. रशीद खान पठान ने श्री. निलेश ओझा के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में जनहित याचिका (PIL) दायर की. उस याचिका में निम्नलिखित कानूनी प्रावधानो को उठाया गया:
(i) सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में सिद्धाराम मेहेत्रे को अग्रीम जमानत दी है। [Siddharam Satlingappa Mhetre v. State of Maharashtra, (2011) 1 SCC 694]
(ii) भारतीय कानून और संविधान के तहत किसी भी व्यक्ति को केस चलाकर कोर्ट द्वारा दोषी करार दिए जाने तक निर्दोष समझना यह सभी कोर्ट को बंधनकारक है।
(iii) केस की कारवाई पूरी होने तक जमानत देना यह नियम है और केवल अपवादात्मक परीस्थिति में ही जमानत खारिज की जाती है।
(iv) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत Siddharam Satlingappa Mhetre v. State of Maharashtra, (2011) 1 SCC 694, Chandraswami v. Central Bureau of Investigation, (1996) 6 SCC 751, और अन्य केस के जमानत देने में नियम सभी आरोपियों की समान रूप से लागू है।
(v) जब सुप्रीम कोर्ट ने नियम बना लिया है तो किसी भी कोर्ट का जज भी उस नियम के खिलाफ जाकर जमानत देने से किसी भी आरोपी को मना नहीं कर सकता।
उस याचिका को राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष और पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया श्री. के .जी. बालकृष्णन ने दि. 31.10.2011 को एक आदेश पारित कर सुप्रीम कोर्ट के पास भेजा.
बाद में दि. 31.10.2011 को उस याचिका के मुद्दे ही जमानत का एक नया कानून बन गए। [Sanjay Chandra v. CBI, (2012) 1 SCC 40]