“जज” होने का झूठा दिखावा कर अधिकारविहीन अवैध आदेश पारित करने के कृत्य पर बार काउंसिल सदस्य एड. आशीष देशमुख के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज करने की माँग
 
        सुप्रीम कोर्ट एंड हाई कोर्ट पक्षकार संघटना ने बार काउंसिल सदस्य एड. आशीष देशमुख के खिलाफ कठोर कार्रवाई की माँग उठाई है। आरोप है कि एड. देशमुख ने स्वयं को “जज” बताकर ऐसा आदेश पारित किया, जिसके लिए उन्हें किसी प्रकार का वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं था।
संघटना ने स्पष्ट किया है कि देशमुख का यह कृत्य न केवल Advocates Act, 1961 की धारा 35 के प्रावधानों का उल्लंघन है, बल्कि यह कृत्य भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत भी गंभीर आपराधिक अपराध है। अतः उनके खिलाफ तत्काल आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिए।
बार काउंसिल के सदस्य एड. आशीष देशमुख स्वयं को न्यायाधीश बताकर और Advocates Act, 1961 की धारा 35 के अंतर्गत निहित अधिकार का दुरुपयोग कर अधिकार क्षेत्र हड़पने के दोषी हैं। यह सुव्यवस्थित विधिक सिद्धांत है कि व्यावसायिक कदाचार (professional misconduct) से संबंधित शिकायतों पर निर्णय लेने का अधिकार केवल सम्पूर्ण राज्य बार काउंसिल के पास सामूहिक रूप से निहित है, किसी भी व्यक्तिगत सदस्य — यहाँ तक कि अध्यक्ष — के पास भी यह अधिकार नहीं है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि किसी भी व्यक्ति द्वारा इस प्रकार अधिकार ग्रहण करना पूरी तरह से अवैधानिक है और ऐसे सभी कार्यवाही शुरुआत से ही शून्य (void ab initio) मानी जाती हैं।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय तथा विभिन्न उच्च न्यायालयों ने यह भी स्पष्ट किया है कि बार काउंसिल को अधिवक्ता अधिनियम, 1961 (Advocates Act, 1961) की तरतुदों के विपरीत कोई भी नियम अथवा उप-नियम बनाने का अधिकार नहीं है, और यदि बनाए जाते हैं तो वे शून्य और अवैध माने जाते हैं।
[P. Krishnan बनाम द बार काउंसिल ऑफ तमिलनाडु एंड पुदुचेरी, MANU/TN/6110/2021]
सर्वोच्च न्यायालय के 24 सितम्बर 2025 के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट एंड हाई कोर्ट पक्षकार संघटना आक्रामक हो गई है।
विशेष रूप से, एड. आशीष देशमुख के खिलाफ निम्न धाराओं के अंतर्गत कार्रवाई की माँग की गई है:
- धारा 420 IPC – धोखाधड़ी और छल द्वारा लाभ प्राप्त करना।
- धारा 192 IPC – झूठे दस्तावेज या झूठे साक्ष्य तैयार करना।
- धारा 193 IPC – झूठे साक्ष्य देना या गढ़ना।
- साथ ही अन्य संबंधित प्रावधान, जो इस कृत्य को दंडनीय बनाते हैं।
इसके अतिरिक्त, संघटना ने यह भी माँग की है कि एड. देशमुख के विरुद्ध न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) की कार्यवाही प्रारंभ की जाए, क्योंकि स्वयं को न्यायाधीश घोषित करना और वैधानिक अधिकारों का अतिक्रमण करना सीधे-सीधे न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाला कृत्य है।
संघटना के पदाधिकारियों का कहना है कि इस प्रकार की गतिविधि से न केवल अधिवक्ताओं की प्रतिष्ठा को आघात पहुँचता है, बल्कि सम्पूर्ण न्याय व्यवस्था की पवित्रता और विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा होता है। अतः, दोषी के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई कर कानून के शासन और न्यायपालिका की गरिमा की रक्षा करना समय की माँग है।
 
         
         
        