मुंबई पुलिस ने पाँच साल बाद दिशा सालियन की बिल्डिंग का CCTV दोबारा फॉरेन्सिक जांच हेतु भेजा — पर मोबाइल लोकेशन और सीन-रीकंस्ट्रक्शन रिपोर्ट पर अब भी चुप्पी बरक़रार
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुंबई पुलिस से कड़े और सीधे सवाल पूछे
पाँच साल बीत गए — जाँच अभी तक पूरी क्यों नहीं? क्यों केस-दस्तावेज़ पिता सतीश सालियन को अभी तक नहीं दिए गए? एक ही गवाह (परिवार) के बयान 174 CrPC में बार-बार क्यों दर्ज किए गए?
सुनवाई के दौरान राज्य ने अदालत को बताया कि CCTV फुटेज को फिर से फोरेंसिक टेस्ट के लिए भेजा गया है ताकि अभियोगित छेड़छाड़ और कथित VVIP-हस्तियों की मौजूदगी (जिसमें आदित्य ठाकरे का नाम भी सामने आया) की जांच की जा सके।
परंतु इसी बीच एक बड़ा सवाल अनुत्तरित छोड़ दिया गया —SIT ने मोबाइल टॉवर लोकेशन रिपोर्ट और सीन-रीकंस्ट्रक्शन रिपोर्ट, जो पहले केस-फाइल का हिस्सा थीं, पर पूर्ण मौन साधे रखा। दोनों महत्वपूर्ण दस्तावेज़ अब जांच रिकॉर्ड से गायब हैं और इसका कोई स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया गया।
बॉम्बे हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान एक बड़ी और सनसनीखेज जानकारी सामने आई, जहाँ महाराष्ट्र सरकार ने बताया कि जांच आयोग (SIT) ने दिशा सालियन की बिल्डिंग का मूल CCTV फुटेज दोबारा फोरेंसिक जांच के लिए भेजा है।
यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि CCTV से छेड़छाड़, फ्रेम डिलीट होने और दुर्घटना की रात कुछ हाई-प्रोफाइल व्यक्तियों (जिनमें राजनीतिक व्यक्ति आदित्य ठाकरे का नाम भी शामिल है) की संदिग्ध मौजूदगी जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि राज्य सरकार ने दो महत्वपूर्ण पहलुओं पर पूर्ण चुप्पी साधे रखी, जबकि वे पहले SIT रिकॉर्ड का हिस्सा थे:
(1) मोबाइल टॉवर लोकेशन रिपोर्ट
(2) सीन रिकंस्ट्रक्शन रिपोर्ट
दोनों रिपोर्टें अब केस फाइल में उपलब्ध नहीं हैं और, प्रस्तुत दस्तावेज़ों के अनुसार, इन्हें बिना किसी कारण दर्ज किए SIT रिकॉर्ड से हटा दिया गया है।
⚖ हाई कोर्ट ने दागे तीन सीधे सवाल
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बेंच ने महाराष्ट्र सरकार व मुंबई पुलिस से तीन तीखे और स्पष्ट सवाल पूछे:
1. दिशा सालियन की मौत को पाँच साल हो गए — जाँच अभी तक पूरी क्यों नहीं हुई?
2. मृतका के पिता सतीश सालियन को बुनियादी केस दस्तावेज़ अभी तक क्यों नहीं दिए गए?
3. जब 174 CrPC सिर्फ प्राथमिक जांच के लिए है, तो परिवार के बयान बार-बार क्यों दर्ज किए गए?
बेंच ने कहा कि इतने लंबे समय तक फाइल लंबित रहना, दस्तावेज़ों का न देना, और एक ही गवाह से बार-बार बयान लेना गंभीर प्रक्रिया त्रुटि और संदेह का विषय है।
📌 अधिवक्ता निलेश ओझा द्वारा रखे गए कानूनी तर्क
दिशा के पिता की ओर से प्रस्तुत होते हुए एड. निलेश ओझा ने अदालत को बताया:
• CrPC की धारा 176(4) के अनुसार संदिग्ध मृत्यु की जांच परिवार की उपस्थिति में होना अनिवार्य है, जो इस मामले में कभी नहीं हुआ।
• अब तक दर्ज किए गए सभी बयान गैंगरेप और मर्डर की शिकायत दर्ज होने से पहले के हैं, इसलिए उनकी विधिक मूल्यवैधता सीमित है। वास्तविक व प्रभावी जांच तभी संभव है जब संज्ञेय अपराधों पर FIR दर्ज कर नए बयान पुनः कानूनी प्रक्रिया के अनुसार लिए जाएँ।
जब अधिवक्ता निलेश ओझा ने M. Ganesan v. State, 2023 SCC OnLine Mad 8345 के निर्णय पर भरोसा करते हुए यह तर्क रखा कि पुलिस को संपूर्ण जाँच रिपोर्ट सभी संलग्न दस्तावेज़ों सहित पीड़ित को उपलब्ध कराना अनिवार्य है ताकि वह किसी भी त्रुटि या विरोधाभास को प्रमाण सहित चुनौती दे सके, तब माननीय पीठ ने संक्षेप में टिप्पणी की—
“निर्णय दिखाने की आवश्यकता नहीं — कानून की धारा स्वयं स्पष्ट है कि यह दस्तावेज़ पीड़ित को दिए जा सकते हैं।”
पब्लिक प्रॉसिक्यूटर ने अदालत में यह जानकारी दी कि सतीश सलियन और उनकी पत्नी के बयान कई बार दर्ज किए गए, और शुरुआती बयान में उन्होंने किसी पर आरोप नहीं लगाया था, परंतु वर्ष 2025 में उन्होंने संदेह जताया।
हालाँकि, पीठ ने तुरंत सवाल उठाया कि धारा 174 CrPC के तहत की जाने वाली जाँच सिर्फ प्रारंभिक तथ्य-खोज तक सीमित होती है — ऐसे में एक ही गवाह से बार-बार बयान क्यों दर्ज किए गए? अदालत ने जब इस प्रक्रिया का कानूनी आधार पूछा, तो पब्लिक प्रॉसिक्यूटर कोई भी संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके।
यह मुद्दा नया नहीं है — इसे सतीश सलियन ने अपनी याचिका में स्पष्ट रूप से उठाया है, जिसमें उनका आरोप है कि दोहराए गए बयान तत्कालीन आरोपी आदित्य ठाकरे के प्रभाव और निर्देश पर दर्ज किए गए, ताकि एक पूर्व-निर्धारित नैरेटिव तैयार किया जा सके और मामला साधारण दुर्घटना के रूप में सीमित रहे तथा गैंगरेप और हत्या की दिशा में पूर्ण आपराधिक जाँच न बढ़ पाए।
याचिकाकर्ता के अनुसार, अब तक दर्ज सभी बयान संज्ञेय अपराधों वाली शिकायत दर्ज होने से पहले ही लिए गए हैं, और शिकायत दर्ज होने के पश्चात एक भी नया बयान नहीं लिया गया, जिसका मतलब है कि पुराने बयान—कानूनी दृष्टि से—हत्या/यौन अपराध की जाँच में मान्य या पर्याप्त नहीं माने जा सकते।
पाँच साल बाद भी जाँच अधूरी — हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी
गुरुवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से दिशा सलियन की मौत की जाँच में हुई असाधारण देरी पर कड़ी नाराज़गी व्यक्त की। सेलेब्रिटी मैनेजर और स्वर्गीय सुशांत सिंह राजपूत से जुड़ी दिशा सालियन की मौत को लगभग पाँच वर्ष हो चुके हैं, फिर भी पुलिस आज तक अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुँची।
जब सतीश सलियन (पिता) द्वारा केस-पेपर और जाँच दस्तावेज़ उपलब्ध कराने की माँग वाली याचिका पर सुनवाई हुई, तो अदालत ने राज्य से पूछा कि कैसे धारा 174 व 176 CrPC के तहत की जा रही प्रारंभिक जाँच इतनी लंबी खिंच सकती है।
“पाँच साल हो गए और आप कहते हैं जाँच जारी है? आखिर यह क्या है? किसी की मृत्यु हुई है — आपको सिर्फ यह तय करना है कि यह आत्महत्या है, हत्या है, या कुछ और।” — न्यायमूर्ति अजय गडकरी (PP मृण्मय देशमुख से)
दस्तावेज़ न देने पर कोर्ट की कड़ी आपत्ति
याचिका देखने के बाद अदालत ने पूछा कि मृतका के पिता को अभी तक मूल जाँच-दस्तावेज़ क्यों नहीं दिए गए, जबकि पाँच वर्ष बीत चुके हैं। “वह CrPC की धारा 2(w)(a) के अनुसार पीड़ित के दायरे में आते हैं। फिर उन्हें बुनियादी दस्तावेज़ देने में कठिनाई क्या है? निर्देश लेकर स्पष्ट करें।”
📅 अगली सुनवाई 11 दिसंबर को
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अभी पूरे केस रिकॉर्ड की नहीं, बल्कि बुनियादी दस्तावेज़ों की उपलब्धता पर विचार किया जा रहा है, जिसमें पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और मृत्यु के कारण की अंतिम प्रमाणिक रिपोर्ट शामिल है।
न्यायालय ने कहा कि सभी कानूनी अधिकारों, जांच प्रावधानों और दस्तावेज़ उपलब्ध कराने के दायित्व पर अगली तारीख को विस्तृत सुनवाई की जाएगी। पब्लिक प्रॉसीक्यूटर को निर्देश दिया गया कि वह पूरी तैयारी के साथ रिकॉर्ड सहित उपस्थित हों।