STAY UPDATED WITH SC NEWS
मुंबई : न्याय मंदिर, न कि सेवन–स्टार होटल
मुंबई के बांद्रा (पूर्व) में नए बॉम्बे हाईकोर्ट परिसर के शिलान्यास समारोह में भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) श्री बी.आर. गवई ने न्यायपालिका को एक गहरा संदेश दिया।
उन्होंने कहा —
“अदालत न्याय का मंदिर है, सेवन–स्टार होटल नहीं।“ न्यायाधीश अब सामंती शासक नहीं हैं।”
यह वक्तव्य उन सभी न्यायाधीशों के लिए चेतावनी है जो अपनी कुर्सी को सत्ता–सिंहासन समझने की भूल करते हैं।
न्यायाधीश ‘सेवक’, शासक नहीं
CJI गवई ने स्पष्ट किया कि न्यायिक शक्ति कोई व्यक्तिगत विशेषाधिकार नहीं, बल्कि संविधान द्वारा सौंपी गई सार्वजनिक जिम्मेदारी है।
न्यायाधीशों को संविधान के सेवक के रूप में विनम्रता, संयम और समानता की भावना से कार्य करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि न्यायालयों की भव्यता से अधिक जरूरी है उनकी जन–उपयोगिता और जनता का विश्वास।
अहंकार और सत्ता–दुरुपयोग पर सीधा प्रहार
यह टिप्पणी उन न्यायाधीशों पर सीधा संदेश मानी जा रही है जो अदालत को अपना दरबार बना लेते हैं।
विशेषकर मुख्य न्यायाधीश चंद्रशेखर जैसे न्यायाधीशों के संदर्भ में, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का हवाला देने वाले वकीलों को जेल भेजने की धमकी दी थी, यह वक्तव्य एक संविधानिक चेतावनी और नैतिक संदेश है — है।
CJI गवई ने यह स्पष्ट कर दिया कि—
न्यायालय जनता का है, न्यायाधीश का नहीं।
अदालत में भय नहीं, विश्वास का वातावरण होना चाहिए।
फ्यूडल” मानसिकता अब असंवैधानिक और अस्वीकार्य है।
संविधान की भावना का स्मरण
प्रधान न्यायाधीश का यह वक्तव्य संविधानिक विनम्रता और जन–केन्द्रित न्याय की पुनर्स्थापना का संदेश देता है।
उन्होंने न्यायाधीशों को याद दिलाया कि लोकतंत्र में न्यायिक गरिमा सत्ता से नहीं, सेवा से बनती है।
निष्कर्ष
CJI गवई का कथन —
“न्यायाधीश अब सामंती शासक नहीं हैं”दरअसल, एक संविधानिक चेतावनी और नैतिक संदेश है — कि जो न्यायाधीश अहंकार, पक्षपात या शक्ति–दुरुपयोग में लिप्त हैं, उन्हें आत्ममंथन करना होगा।
न्याय का असली अर्थ है विनम्रता, समानता और जनता के प्रति जवाबदेही।