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बाबा रामदेव, पतंजली योगपीठ मामले में जस्टीस हिमा कोहली और जस्टीस अहसानुद्दीन अमानुल्ला द्वारा भारतीय संविधान के अनुच्छेद १९, १४ और चीफ जस्टीस चंद्रचूड द्वारा दिए गये निर्देशों की अवमानना।

कोर्ट अवमानना के कारवाई के लिए  की याचिका दायर।

इसके पहले जजों को ऐसी केस में सजा मे जेल के साथ जा चुकी  है जज की कुर्सी।

संविधान विरोधी, गैरकानूनी मनमाने व्यवहार से फंसे दोनो जज।

फार्मा माफीया और इंडियन मेडीकल एसोशिएशन द्वारा कोरोना वैक्सीन  तथा ऍलोपथी दवाइयों के दुष्परीणामो को दबाने का प्रयास उजागर, देशभर में फुटा गुस्सा।

नई दिल्ली:- हाल ही मे एप्रिल २०२४ को चीफ जस्टीस डी. वाय. चंन्द्रचूड की वरीष्ठ खंड पीठ ने Bloomberg Television Production Services India (P) Ltd. v. Zee Entertainment Enterprises Ltd., 2024 SCC OnLine SC 426 मामले  मे स्पष्ट आदेश दिये है की कोई भी व्यक्ती अगर अपनी कोई बात जनता के हित मे रखने का दावा कर रहा है और अगर उसका यह कहना है की उसके पास उसकी बात साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत है तो उस व्यक्ती को अपने विरोधी याचिकाकर्ता के खिलाफ की बाते बोलने से रोकने वाला आदेश कोर्ट नही दे सकती.

लेकिन जस्टीस हीमा कोहली और जस्टीस अमानुल्ला ने बाबा रामदेव 16 अप्रैल 2024 को भरी अदालत में कहा की आप ऍलोपॅथी के खिलाफ नहीं बोल सकते.

उन दोनों जजेस के यह निर्देश पूर्णत: गैर कानूनी और असंवैधानिक  है. इन  दोनों जजेस के व्यवहार की निंदा कई सुप्रीम कोर्ट जजेस और पूर्वे चीफ जस्टीस भी कर चुके है. वरिष्ठ और संविधान पीठ के निर्देशों की अवमानना करने पर सुप्रीम कोर्ट के जजेस को कोर्ट अवमानना कानून, 1971 की धारा 2(b), 12, 16   के तहत 6 माह की सजा हो सकती है. और IPC 166,219 के तहत ऐसे जजेस को 7 वर्ष की सजा का प्रावधान है।

वह याचिका इंडियन लॉयर्स एंड ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट्स एसोसिएशन’ की  ओर से दायर की गई है और उसकी पैरवी इंडियन बार एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष निलेश ओझा और सुप्रीम कोर्ट लॉयर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एड. ईश्वरलाल अग्रवाल करने वाले है।  

इस बारे मे सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने भी कई आदेश पारीत कर विरोध की या असहमती की आवाज को दबाने का कोई प्रयास इस देश मे मंजूर नहीं किया जायेगा ऐसा स्पष्ट कानून बनाया है।  

Indirect Tax Practitioners’ Assn. v. R.K. Jain, (2010) 8 SCC 281 मामले में सुप्रीम कोर्ट ने वाल्टीयरके कथन को भी लिखा है;

Voltiare said,

I may disagree with you but I will fight till death for your right to say it”

“मै आपसे असहमत हो सकता हूँ लेकिन आपको अपनी बात रखने का मौका मिले इस हा की बात के लिए मैं अपनी अंतीम सास तक लडूंगा

ॲलोपॅथी कंपनीयो को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए फार्मा माफियाओ के इशारे पर Indian Medical Association (IMA) द्वारा पतंजली आयुर्वेद और रामदेव बाबा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमे ॲलोपॅथी दवाईयो और वैक्सीन के जानलेवा दुष्परिणाम को छुपाकर उन्हे असरदार दिखाकर आयुर्वेदिक, नॅचारोपॅथी जैसी ज्यादा बेहतर, असरदार, हानिरहित तथा सस्ती चिकित्स्ता पद्धत्ति को नीचा दिखाकर  उसके द्वारा ईलाज करने वाले डॉक्टर, चिकित्स्क आदि को धमकाकर जनता की सेवा करने से परावृत्त करने का आपराधिक षड्यंत्र रचा गया था। 

Universal Declaration on Bioethics & Human Rights, 2005 और Montgomery v. Lanarkshire Health Board (General Medical Council intervening), [2015] 2 WLR 768मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने दिये गये निर्देशानुसार हर डॉक्टर का यह फर्ज  है की वो किसी भी पेशंट को कोई भी दवाई (चिकीत्सा) देने से पहले उसे उस दवाई/वैक्सीन या चिकीत्सा के सारे दुष्परीणामों को पेशेट को समझने वाली भाषा मे बताये और पेशंट को यह भी बताये  अगर वो  उस दवाई/वैक्सीन या चिकित्सा से  ईलाज नहीं करवाना चाहते तो उस  पेशंट के  पास अन्य कौनसी चिकीत्सा पध्दतीया और दवाईया जैसे आयुर्वेदनॅचरोपॅथी जैसे पर्याय  उपलब्ध है।इस इन नियमो का उल्लंघन करने वाले डॉक्टर्स का लाइसेंस कैन्सिल हो सकता है और वह डॉक्टरपिडीत पेशंट और उसके परिवारों को मुआवजा देने के लिए बाध्य है।

सारी दुनिया और भारत मे भी वैक्सीन के दुष्परीणामो से कई मौते हुई है और कई गंभीर दुष्परिणाम भी हुए और इस बात को केन्द्र सरकार की AEFI समीती मे माना है।

 

लेकिन उसी जानलेवा वैक्सीन को उसके दुष्परीणामो को छुपाकर भारत देश की करोडो जनता को दिया गया। उसके खिलाफ IMA ने कोई आवाज नही उठाई। उसके खिलाफ बाबा रामदेव ने आवाज उठाई, तो IMA ने उस जानलेवा वैक्सीन के समर्थन मे सुप्रीम कोर्ट मे शपथपत्र दिया। इससे यह साबित हो जाता है की IMA को आम आदमी के जान की चिंता नही है बल्कि वे फार्मा माफिया के फायदे के लिए काम कर रहे है।

 

वैज्ञानिक शोधपत्र मे यह पाया गया की कोरोना वैक्सीन से कोरोना महमारी मे कोई भी भरौसेलायक सुरक्षा नही मिलती है बल्कि इस वैक्सीन के जानलेवा दुष्परीणाम है। कोव्हिशील्ड वैक्सीन को मौत के दुष्परीणामो  की वजह से 21 युरोपियन देशो मे पाबंदी लगा दी गई थी।

Link: –  https://www.aljazeera.com/news/2021/3/15/which-countries-have-halted-use-of-astrazenecas-covid-vaccine

शोध मे यह भी पाया गया की ज्यादा वैक्सीन देने वाले देशो मे ज्यादा मौते हुई है और vaccine का खतरा कोरोना से 98 गुना ज्यादा हानिकारक है।

Links: – https://www.thegatewaypundit.com/2022/09/ethically-unjustifiable-new-harvard-johns-hopkins-study-found-covid-19-vaccines-98-times-worse-disease/

 

शोध मे यह भी पाया गया की vaccine लेनेवाले लोगो मे cancer का खतरा 10,000 गुणा बढ़ गया है।

Link: – https://adversereactionreport.org/research/govt-database-shows-10000-increase-in-cancer-reports-due-to-covid-vaccines

डॉ. स्नेहल लुणावत की मौत कोव्हीशील्ड वैक्सीन के दुष्परिणामो से खुन की गुठलीया जमने की वजह से हुई भी और उनके पिता द्वारा दायर याचिका मे बॉम्बे हाय कोर्ट ने बिल गेटसअदार पुणावाला को 1000 करोड़ रूपये जुर्माने का नोटीस जारी किया है। 

Link: – https://rashidkhanpathan.com/bill-gates-adar-poonawallas-game-over-bombay-high-court-took-cognizance-issued-notice-in-a-vaccine-murder-case-of-dr-snehal-lunawat-where-interim-compensation-of-rs-1000-crore-is-soug/

भारतीय संविधान के अनुच्छेद १९ के तहत किसी भी मामले मे हर व्यक्ती को अपनी अलग राय रखने का अधिकार है. चिकीत्सा पद्ध‌तीयो के बारे में भी ऐसा ही कानून संयुक्त राष्ट्र संघ (युनो) ने २००५ मे बनाया है।  Universal Declaration on Bioethics & Human Rights, 2005

उसमे यह स्पष्ट किया गया है की हर चिकीत्सा पद्धती और दवाईयों के अच्छे और बुरे परीणामो की चर्चा, आरोप-प्रत्यारोप को बढावा देना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की सम्पत्ति और समय जो आम जनता की सम्पति है। उसका दुरूपयोग फार्मा माफिया के मदद के लिए करने वाले जजेस को IPC 409 में उम्रकैद की सजा का प्रावधान है।

ऐसे जजेस के पास से तुरंत सभी कामकाज निकाल लेना और उनकी  बर्खास्तगी का प्रस्ताव राज्यसभा को भेजने का अधिकार चीफ जस्टीस ऑफ इंडिया को है। दोनों  आरोपी जजेस के खिलाफ इन्ही प्रावधानों में कानूनी कारवाई के लिए जनहित याचिका राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग में दर्ज की जा चुकी है। [PIL No. 5991/IN/2024]

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